अपने ही मंदिर रुपी संगठन को कमजोर करना क्या उचित है?

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वेस्ट सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ एक मंदिर है जिसकी स्थापना मंदिर के पुजारी डॉ आर पी भटनागर ने एक-एक ईंट (कार्यकर्ता) को कड़ी मेहनत से जोड़कर, तराश कर की थी। कितने ही पत्थरों को तराश कर हीरा बना दिया। अंततोगत्वा डब्ल्यू सी आर एम एस रूपी मंदिर को ऐसी पवित्रता तक पहुंचाया जहां माथा टेक कर अनेकों लोग पवित्र हो गए। बड़े से बड़ा अधिकारी भी नतमस्तक हो गया। निस्वार्थ रूप से कार्य कर रहे साधक डॉ आर पी भटनागर ने अपनी उम्र का स्वर्णिम काल संगठन को सजाने संवारने में लगा दिया। इसके लिए उन्होंने अनेक कुर्बानियां दी। अपने परिवार को जो समय देना था वो उन्होंने डब्लू सीएमएस परिवार को दिया। इस दौरान उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शैली भटनागर जो स्वयं त्याग समर्पण की मूर्ति थी, का स्वर्गवास हो गया। यहाँ यह बताना जरूरी है कि श्री अशोक शर्मा हमेशा ही डॉक्टर भटनागर को पिता व स्वर्गीय श्रीमती भटनागर को मां मानता था। विपत्ति के समय अनेकों बार वह अपने मां-बाप की गोद में सिर रखकर रोया है और डॉक्टर भटनागर ने उसे कभी निराश नहीं किया और अशोक शर्मा को हमेशा हर मुसीबत से उबारा। डॉ आर पी भटनागर का एक ही पुत्र है- अमित भटनागर। जो एक पढ़ा-लिखा सभ्रांत इंसान है तथा मैनेजर के रूप में 1.5 लाख प्रतिमाह की सैलरी पर कार्यरत था। डब्लू सीएमएस पर अपना सर्वत्र निछावर करने वाले डॉक्टर आरपी भटनागर जो प्रतिदिन 18 से 20 घंटे संगठन तथा कामगारों के दुख दर्द दूर करने में गुजारते हैं, आज 84 वर्ष के हो गए हैं और पत्नी के स्वर्गवासी होने के बाद किसी हद तक टूट चुके थे। ऐसे समय में एक बेटे का फर्ज निभाने के लिए अमित भटनागर ने अपनी अच्छी खासी नौकरी से त्याग-पत्र देकर निस्वार्थ रूप से श्रवण कुमार की तरह अपने पिता की सेवा 24 घंटे करने की ठान ली। और अपने महान पिता के साथ कदम मिलाकर चल दिए। यही अशोक शर्मा ने 2014 में अमित जिसे वह अपना भाई मानता था, को डब्ल्यू सी आर एम एस में पदाधिकारी बनाने का प्रस्ताव रखा। इसके पीछे उसका ही तर्क था की अमित का रेलवे में न होना और उसकी काबलियत (निर्भीक, ओजस्वी वाणी, ज्ञान आदि) का डब्ल्यू सी आर एम एस को बड़ा फायदा मिलेगा। हालांकि डॉ भटनागर ने इसका विरोध भी किया। अशोक शर्मा की जिद के चलते अमित को पहले उपाध्यक्ष फिर वर्किंग प्रेसिडेंट सर्वसम्मति से बनाया गया।
परंतु किसे पता था कि जिस अशोक शर्मा को डॉक्टर भटनागर ने उंगली पकडकर चलना सिखलाया वही अपने निहित स्वार्थों के चलते अपने बाप पर ही झूठे आरोप लगाकर कटघरे में खड़ा कर देगा? लानत है ऐसे शख्स पर जिसकी शख्सियत डब्ल्यू सी आर एम एस के अलावा कुछ भी नहीं है। डब्ल्यू सी आर एम एस के पवित्र मंदिर पर कीचड़ उछाल कर उसकी नींव हिलाने की उसकी कुटिल साजिश का भांडा फोड हो चुका है। चंद लोगों को गुमराह करके होटल में आनन -फानन में मीटिंग आयोजित करने से डब्ल्यू सी आर एम एस की नींव नहीं हिल सकती। उसकी एक-एक ईंट और मूर्ति मे जड़ा हुआ हीरा आज चिल्ला चिल्ला कर पूछ रहा है

1) तुमने ऐसा क्यों किया?

2) क्या तुम लाल वालों से मिलकर अपने ही संगठन को कमजोर करना चाहते हो?

3) क्यों तुमने अपनी पक्ष डॉ आर पी भटनागर की मौजूदगी में नहीं रखा?

4) क्यों तुमने अपने पिता पर झूठे आरोप लगाकर अपने कुकृत्यों पर पर्दा डालने की कोशिश की?

5) क्यों तुमने अपने ही संगठन के साथ गद्दारी कर कामगारों की पीठ में छुरा घोपा, क्या यह सही समय था?

6) क्यों तुमने मज़दूर आंदोलन को कमजोर करने की साजिश रची?

कुत्तों के भौकने से कभी गजराज विचलित नहीं होते।
गीदड़ धमकियों से शेर कभी डरा नहीं करते।
अभी भी समय है सुधर जाओ वरना——–
सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।

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