भायखला प्रिंटिंग प्रेस को बंद होने से बचाने के लिए मज़दूर संघ ने भरी हुंकार

0
1021

प्रेस को बंद करना मंज़ूर नहीं – डॉ. आर.पी भटनागर

मुंबई. भायखला प्रेस को बंद करने के फरमान से रेलकर्मियों में हलचल शुरू हो गई।  कर्मचारी संगठन विरोध पर उतर आए और प्रेस को बंद करने का फैसला गलत बताते हुए उसका विरोध करने का निर्णय लिया। लगभग 138 वर्ष पुराना मध्य रेलवे का ऐतिहासिक प्रिंटिंग प्रेस अब स्वयं इतिहास बनने वाला है. सूत्रों द्वारा जानकारी मिली है कि मध्य रेलवे के भायखला प्रिंटिंग प्रेस को 31 दिसंबर 2020 तक बंद करने का निर्णय रेलवे बोर्ड ने ले लिया है. इस मामले की जानकारी मिलने पर सीआरएमएस और डब्ल्यूसीआरएमएस के अध्यक्ष व एनएफआईआर के कार्याध्यक्ष डॉ.आर.पी.भटनागर ने तत्काल १७ सितंबर की शाम को एक वर्चुअल मीटिंग वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा आयोजित की। इस मीटिंग की अध्यक्षता मजदूर मसीहा डॉ.भटनागर ने करते हुए सीआरएमएस के अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों से मामले की जानकारी ली एवं उन्होंने इस पर आगामी लड़ाई लडऩे के लिए सभी को दिशानिर्देशित किया। साथ ही जल्द ही प्रशासन से बैठक कर मामले से अवगत कराने व प्रिंटिंग प्रेस को बचाने की बात कही।

 गौरतलब हो कि रेलकर्मियों के साथ सीआरएमएस हरदम से कंधे से कंधे मिलाकर खड़ी रहती है। इसी तरह सरकार के इस फैसले से रेलकर्मियों को होने वाले नुकसान के साथ रेलवे का भी अनहित होने की आशंका जताते हुए भायखला प्रिंटिंग प्रेस के पदाधिकारी जोहन सिक्योरा ने मीटिंग में अपनी बात रखी। इसके साथ ही उन्होंने अध्यक्ष महोदय को यह भी बताने की कोशिश की किस तरह से आज हम ३५ वर्षोंसे अपने करीब २५० सहयोगियों के साथ दिन-रात मेहनत करके रेलवे के हर आदेश मुताबिक आउटपुट देते चले आ रहे हैं। आगे कहा कि इसी प्रिंटिंग प्रेस को मार्डनाइज करने के लिए २०१७ में करोड़ों की मशीनें बिठाई गयीं। यही नहीं यहां के कर्मचारियों के अच्छे कार्य को देखते हुए २०१८ में रेलवे के उच्चाधिकारियों द्वारा २५ हजार की पुरस्कार राशि भी प्रदान की गई और आज वही प्रिंटिंग प्रेस घाटे की बात कह कर ३१/१२/२०२० तक बंद कहने की बात यह तो तुगलकी फरमान साबित हो रहा है। इन्हीं के साथ सतीष पाटिल और हंसराज सरदार ने भी अपनी इस मामले पर जानकारी को साझा किया और अपने सुझावों से डॉ.भटनागर को अवगत कराया।

इस वर्चुअल मीटिंग में संघ के तेजतर्रार महामंत्री डॉ.प्रवीण बाजपेयी ने अपने विद्वता के अनुसार इस पर सुंदर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे भी विभाग हैं, जिसको हम खर्च किए जा रहे पैसों की तुलना नहीं कर सकते। जैसे हमारी सेना पर कितना खर्च किया जा रहा, उसका कार्य सबसे अलग है, ठीक उसी हम रेलवे के अपने घरेलू प्रिंटिंग प्रेस की भी अपनी गोपनीयता है, जो निजीकरण होने पर भंग होने की पूरी संभवना हो सकती है। इसी तरह संघ के मुंबई मंडल के अध्यक्ष विवेक शिशोदिया और डिविजनल सिक्रेटरी दुबे ने अपने अनुभव इस मामले पर साझा किए। संघ के लोकप्रिय उपाध्यक्ष अमित भटनागर से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि जब रेल प्रशासन के पास जमीन/एसेट्स/ लेबर सभी कुछ है तो प्रशासन इससे सुचारू रूप से चलाने में सक्षम क्यों नहीं है और बाहर वाला लालची  ठेकेदार इसे सही तरीके से चला सकता है तो रेल प्रशासन क्यों नहीं।

प्रशासन अपनी  नाकामी कर्मचारियों पर थोप कर आराम से मलाई खाना चाहता है.  ऐसी इकाइयों को  प्राइवेट आइज करने की जगह ऐसे सक्षम  अधिकारी लाने चाहिए जो प्राइवेट कंपनी से अच्छे रिजल्ट दे सकें।

प्रेस जैसी अति महत्वपूर्ण और गोपनीय कार्य को बाहर देना सुरक्षा की दृष्टि से बिल्कुल सही नहीं है। उन्होंने कहा कि यह संगठित क्षेत्र के मजदूर के साथ अन्याय है  ही लेकिन जहां-जहां रेलवे मैं प्राइवेटाइजेशन हुआ है वहां सभी जगह असंगठित क्षेत्र का मजदूर खून के आंसू रो रहा है। ना ही उसे खाने के लिए पगार है और ना ही कोई भी सुविधा। ऐसे तरक्की करेगा हमारा देश और हमारी रेलवे?  युवा नेता अमित भटनागर ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि ये प्राइवेटाइजेशन रेल जगत के लिए अभिशाप साबित होगा। विदित हो कि इस संबंध में मध्य रेलवे ने रेलवे बोर्ड के आदेश का हवाला देते हुए भायखला रेल प्रिंटिंग प्रेस को भी पिछले दिनों निर्देश जारी कर कहा है कि प्रेस में कार्यरत सभी कर्मचारियों की जानकारी तत्काल मुख्यालय को उपलब्ध कराई जाय. बताया गया है कि भायखला रेल प्रिंटिग प्रेस बंद होने के पहले यहां कार्यरत कर्मचारियों,अधिकारियों को उनकी स्थिति के अनुसार अन्य विभागों में समाहित करने की मध्य रेलवे की योजना है. दूसरी तरफ रेलवे के पास देश भर में कुल 14 प्रिंटिंग प्रेसें थीं. मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इनमें से 9 प्रिंटिंग प्रेसों को गैर जरूरी मानते हुए बंद कर दिया, जबकि मुंबई सहित 5 प्रिंटिंग प्रेसों को बनाए रखने का फैसला हुआ था. इस बीच रेलवे बोर्ड ने बाकी 5 प्रेसों को बंद करने का निर्णय ले लिया. यह प्रेसें मुंबई, दिल्ली, हावड़ा, चेन्नई और सिकंदराबाद की हैं.

SHARE

Leave a Reply