रेल कामगार स्पेशल ट्रेनों में सोशल डिस्टेंसिंग की उड़ीं धज्जियां

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सी.आर.एम.एस. ने दी प्रशासन को चेतावनी

मुंबई। कोविड-१९ की महामारी के चलते संपूर्ण विश्व में हाहाकार मचा हुआ है। भारत जैसे बहुसंख्यक देश में भी कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। जहां एक ओर संक्रमण का खतरा है, वहीं दूसरी ओर अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। दिहाड़ी कामकाजी वर्ग को रोज-रोटी के लाले पड़ रहे हैं। लाखों मजदूरों का पलायन अनवरत जारी है।

इन्ह मुद्दों को लेकर तमाम तरह की राजनीति हो रही है, परंतु अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और लोगों को अपने गंतव्य स्थानों तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए रेलकर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर राष्ट्र हित में एक योद्धा की तरह अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। रेल कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी से भली-भांति परिचित हैं, परंतु शायद रेल प्रशासन को अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं है। लॉकडाउन के दौरान किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले एसडीओपी (स्टेंडर्ड डिटेल ऑपरेटिंग प्रोसीजर) बनाना जरूरी है और रेलवे के विभिन्न विभागों ने ऐसा किया भी है। मगर ऐसा लगता है कि वह सब कागजों तक ही सीमित हैं। मुंबई मंडल के रेलवे कर्मचारी सुदूर सबरवन क्षेत्रों से अपने कार्यस्थल पर आते हैं। आठ घंटे की ड्यूटी और दो से तीन घंटे लोकल ट्रेन की कठिन यात्रा। कुल मिलाकर के १० से ११ घंटे ड्यूटी पर रहते हैं। लॉकडाउन-१ २५ मार्च से शुरू हुआ थआ और आज लॉकडाउन-५ चल रहा है। मुंबई की लाइफ लाइन बंद है। रेल प्रशासन ने मध्य रेलवे में आरंभ में तीन कामगार स्पेशल ट्रेनें चलाई। दो कर्जत से, एक कसारा से, परंतु वे पर्याप्त नहीं थीं। इन ट्रेनों में अत्याधिक भीड़ होने की वजह से रेलकर्मी उनमें चढ़ भी नहीं पाते और इसी के चलते विद्याविहार स्टेशन पर रेल योद्धाओं का रोष देखने को मिला। सी.आर.एम.एस. के अध्यक्ष डॉ.आर.पी.भटनागर ने इस मुद्दे को पूर्ण गंभीरता के साथ लिया। उपाध्यक्ष श्री अमित भटनागर, जिनका मोबाइल फोन २४ घंटे लोगों की समस्याएं सुनने और तथ्यों को जुटाने में लगा रहता है। कामगारों का प्रत्येक समस्या की पूरी जानकारी अपने अध्यक्ष तक पहुंचा रहे हैं और इसका परिणाम यह हुआ कि रेल प्रशासन कल्याण से एक अतिरिक्त स्पेशल ट्रेन चलाने को बाध्य हुआ, परंतु माटुंगा और परेल वर्कशॉप फिर से क्रियाशील हो जाने की वजह से यह चार स्पेशल ट्रेनें भी पर्याप्त नहीं हैं। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन बिल्कुल नहीं हो पा रहा है।

जहां एक बर्थ पर दो लोग ही बैठने चाहिए, वहां चार-चार लोग मजबूरी में बैठ रहे हैं। कितने कामगार खड़े रह कर यात्रा कर रहे हैं। डॉ.आर.पी.भटनागर ने महाप्रबंधक, मध्य रेल से बातचीत की और कामगारों का पक्ष मजबूती के साथ रखकर और अधिक स्पेशल ट्रेनें चलाने की मांग की है। उन्होंने साफतौर पर कहा है कि रेल कर्मचारियों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जहां एक ओर पश्चिम रेलवे में आठ स्पेशल ट्रेनें कामगारों के लिए चलाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर मध्य रेलवे में केवल चार। यह न्यायसंगत नहीं है। इस दिशा में महाप्रबंधक महोदय का रूख सकारात्मक है और शीघ्र इस समस्या के निराकरण की उम्मीद है। सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ के पदाधिकारी कामगारों की तरह हर संभव सहायता करने और उन्हें स्वास्थ्य के विषय में जागरुक करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। पांचों मंडलों में कामगारों को हैंड सेनीटाइजर, मास्क वितरण, रेलवे कॉलोनियों का सेनीटाइजेशन, कोविड संक्रमित मरीजों की मदद करने जैसे कार्यों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

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