संपादकीय : हम उनका ऋण कभी नहीं उतार सकते…

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डॉ. आर.पी. भटनागर,

भारतरत्न डॉ. बाबा साहब आंबेडकर भारतीय इतिहास का वो नायाब रत्न जडि़त पन्ना है जो युगों-युगों तक अपनी आभा बिखेरता रहेगा। उनके बारे में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाने के समान है। हम सब भारतीय सौभाग्यशाली है कि ऐसे महामानव ने 14 अप्रैल 1991 को हमारे देश में जन्म लिया। विपरीत परिस्थितियों में भी इस महाकर्मयोगी ने अतुलनीय देशभक्ति दिखाते हुए सम्पूर्ण भारतवासियों विशेषकर शोषित और निर्धन वर्ग के उत्थान के लिए जो भागीरथी प्रयास किए उनका कोई दूसरा उदहारण नहीं हो सकता। 14 अप्रैल को भारत ही क्या सम्पूर्ण विश्व उनकी 127वीं जयंती मनाएगा। डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के जनक थे जिन्होंने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार किया था। वह एक महान मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। आज जो भी अधिकार हमें प्रदत है वो उन्ही की देन है। उन्होंने समाज में जागरूकता लाने एवं उसे सशक्त बनाने के लिए एक ऐसा नारा दिया – शिक्षित हो, संगठित हो, संघर्ष करो ! जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था। बिना शिक्षित हुए हम अपने अधिकारों को नहीं समझ सकते। निक्षरता एक अभिशाप के समान है। वर्तमान समय में ट्रेड यूनियन आंदोलन को मजबूती देने के लिए कार्यकर्ताओं का शिक्षित होना बहुत जरुरी है। शिक्षित होने के बाद ही संगठन की महत्ता को समझा जा सकता है और संगठित होकर ही एक सफल संघर्ष को अंजाम दिया जा सकता है। सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के चलते और निजीकरण को बढ़ावा देने का ही परिणाम है कि हमारे देश में असंगठित क्षेत्र का दायरा 93′ तक पहुंच चुका है। श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव कर विदेशी कंपनियों को एफडीआई के जरिए मजदूरों का शोषण करने और उन्हें गुलाम बनाने का रास्ता साफ किया जा रहा है। आज फिर सम्पूर्ण भारतीय समाज डॉ.अंबेडकर जैसे महान कर्मवीर की बाट जोह रहा है। परन्तु महान आत्मा कभी मरती नहीं है। आज भी परम पूज्य डॉ. बाबा साहब अंबेडकर अपनी विचारधारा के रूप में हमारे बीच विद्यमान है। जरुरत इस बात की है कि हम उनके दिखाए हुए मार्ग पर चले, उनकी विचारधारा का अनुसरण करें, आपसी मतभेद भुलाकर निस्वार्थ रूप से प्रत्येक शोषण के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाये। तभी यह जयंती मनाना सार्थक होगा और ऐसे महान योध्दा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

परम पूज्य डॉ. बाबा साहब अंबेडकर को कोटि-कोटि नमन।

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