डॉ. आर.पी. भटनागर,
हमारा देश कभी सोने की चिडिय़ा कहलाता था। जैसा भी था खुशहाल था। फिर एक ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए अंग्रेज भारत आए। व्यापार के बहाने पूरे देश पर अपना अधिपत्य जमा लिया। हमारे देश के संसाधनों का उन्होंने भूरपूर दोहन किया, भारतवासियों का भरपूर शोषण किया और हमारे बीच फूट डालकर कई दशकों तक हमें गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखा। हमारे देश को भरपूर लूटा और इस देश की अकूत संपत्ति जिस पर हमारा अधिकार थाा, को भरपूर लूट कर ब्रिटेन ले गए। इस देश को आजाद करवाने के लिए महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, अश्फाक उल्ला खान, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, सुभाषचंद्र बोस, खुदीराम बोस, बाल गंगाधर तिलक जैसे अनेकों देशभक्तों ने अपनी जान तक कुर्बान कर दी। रानी लक्ष्मी बाई, छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे वीरों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जो जंग छेड़ी थी उसका परिणाम 1947 में सामने आया और हमारा देश अंतत: आजाद हुआ। इन सभी महान विभूतियों ने अपने निहित स्वार्थो से ऊपर उठकर इस देश और देशवासियों के लिए जो बलिदान दिया वे कभी भुलाए नहीं जा सकते हैं। हमारा देश आजाद हुआ मगर एक टीस हमारे दिल में आज भी है कि जाते-जाते भी अंग्रेस अपनी हरकत से बाज नहीं आए और देश का बटवारा कर गए। खैर उसकी अपनी अलग दास्तां है। परमपूज्य बाबा साहेब अंबेडकर ने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जंग लड़ी, शोषित वर्ग को न्याय दिलाया और भारत क संविधान की रचना की। उन्होंने कहा था शिक्षित हो, संगठित हो, संघर्ष करो। मात्र तीन शब्दों में वह हमें एक ऐसा संदेश दे गए जो आज भी उतनी ही अहमियत रखता है जो पहले रखता था। जिस देश में पहले एक सुई भी नहीं बनती थी उस देश ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के सक्षम नेतृत्व, दूरदर्शिता और पक्के इरादे के बल पर उन्नति की। देश में कल-कारखाने लगे, नदियों पर विशालकाय बांध बने, बिजली का उत्पादन हुआ। ऐसे ही अनेक भागीरथी प्रयासों से देश प्रगति की राह पर आज भी अग्रसर है।
सवाल यह उठता है कि वर्तमान में हम किस ओर जा रहे हैं। सही मायने में देश की प्रगति तब होती है जब हमारे किसान, मजदूर और आम जनता खुशहाल हों। हमारी महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिले और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो, हमारे वरिष्ठ नागरिक स्वाभिमान से जी सकें। परंतु स्थिति इन सबके विपरीत दिशा में जा रही है। अमीर और अमीर और गरीब और गरीब और अधिक गरीब होता जा रहा है। जो भी नीतियां बनाई जा रही हैं, वो सिर्फ पूंजीपतियों के हितों को ध्यान मेंरखकर बनाई जा रही हैं। निजीकरण, ठेकेदारीकरण, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) आदि लागू करने से सिर्फ और सिर्फ गरीब मजदूरों को शोषण ही हो रहा है ठेकेदार गरीब मजदूरों के साथ बधुंआ मजदूर जैसा बर्ताव करते हैं। 5-10 हजार प्रतिमाह आमदनी से कैसे बेचारा मजदूर अपनी संतान को डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के सपने देख सकता है? वृद्ध अवस्था में स्वाभिमान से जीने की लाठी (पेंशन) भी छीन ली गई है। ऊपर से कहते हैं कि बचत करो! यहां कोई संसद में चलने वाली कैंटीन तो है नहीं, गरीब मजदूर को दो वक्त की रोटी तो नसीब होती नहीं है वह बेचारा बचत क्या करेगा?
पंूजीपतियों की जेबे भरी जा रही हैं। संगठित क्षेत्र के कामगारों की समस्याओं का अंबार लगता जा रहा है, कोई सुनवाई नहीं होती वहीं असंगठित क्षेत्र का दायरा बढ़ता जा रहा है, इसमें कार्य करने वालों का शोषण चरम सीमा पर है।
मगर हम मूक दर्शक की भांति तमाशा देख रहे हैं। क्यों नहीं हम अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते? क्या हमारी धमनियों में बहने वाला रक्त जम गया है? क्यों नहीं हम शिक्षित और संगठित होकर संघर्ष करते?
हमें संगठित होकर निर्णायक संघर्ष करना ही होगा वरना आगे आने वाली पीढिय़ों हमें धिक्कारेगीं।
उठ अर्जुन, गाण्डीव उठा, युद्ध कर।