संपादकीय अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की प्रासंगिकता

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डॉ. आर.पी. भटनागर,
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत 1 मई 1886 से मानी जाती है जब अमेरिका के मजदूर संगठनों ने काम का समय 8 घंटे से ज्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेमार्केट में बम धमाका हुआ था। यह बम किसने फेंका यह अज्ञात था। इसके निष्कर्ष के तौर पर पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां दाग दीं और सात मजदूर मारे गए। चाहे इस घटना का अमेरिका पर एकदम कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा था लेकिन मजदूर एकजुट हुए और अंतत: 8 घंटे का काम करने का समय निश्चित कर दिया गया। मौजूदा समय में भारत व अन्य देशों में मजदूरों के 8 घंटे काम करने से संबंधित कानून लागू हैं।
किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग की प्रगति में मजदूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। किसी भी उद्योग में कामयाबी के लिए मालिक, कामगार, सरकार और मजदूर संगठन अहम धड़े होते हैं। कामगारों के बिना कोई भी औद्योगिक ढ़ांचा खड़ा नहीं रह सकता।
भारत में एक मई का दिवस सर्वप्रथम 1 मई 1923 में मनाना शुरू किया गया। भारत जैसे लोकतंत्रीय ढांचे में तो सरकार भी लोगों की तरफ से चुनी जाती है जो राजनैतिक लोगों को अपने देश की बागडोर सौंपते हैं। वह प्रबंधन चलाने के लिए मजदूरों, कामगारों और किसानों की बेहतरी, भलाई और विकास, अमन और कानूनी व्यवस्था बनाए रखने के लिए बचनबद्ध होते हैं।
भारत में आम चुनाव हो रहे हैं। राजनैतिक दल बड़े-बड़े लुभावने वादे कर रहे हैं।  परंतु यदि वस्तुस्थिति पर नजर डाले तो स्थिति बड़ी चिंताजनक है।  सरकार द्वारा लगातार निजीकरण  को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के चलते मजदूरों का शोषण हो रहा है। श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव कर चंद रईसजादों को फायदा पहुंचाया जा रहा है, विदेशी कंपनियों को मजदूरों का दोहन मनमाने ढ़ंग से करने के अधिकार दिए जा रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि डिफेंस और रेलवे जैसे देश की संप्रभुता से जुड़े महकमों को भी नहीं बख्शा जा रहा। इससे सरकार की नीतियों पर एक सवालिया निशान लग गया है। भारतीय रेलवे का प्रत्येक कर्मचारी एक सैनिक की भांति अपनी ड्यूटी को अंजाम देता है परंतु उससे गारंटेड पेंशन का अधिकार छीनकर उसे एनपीएस में मायाजाल में फंसा दिया गया। सातवें केंद्रीय वेतन आयोग ने कुछ लाभ नहीं दिया। अनेक आश्वासनों के बाद भी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों सरकार कुछ देने मूढ में नहीं दिखती। ऐसे समय में मजदूर दिवस की प्रासंगिकता बहुत बढ़ जाती है। सभी मजदूरों की एकजुटता नितांत आवश्यक है। नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन और उससे संलग्न संगठन सीआरएमएस / डब्ल्यूसीआरएमएस जैसे मजदूर हितैषी संगठनों ने यह बीडा उठाया है। दिवस ही क्यों 1 से 8 मई तक प्रमुख केंद्रों पर कामगार जन जागरण सप्ताह मनाया जा रहा है। रेलवे बचेगी तो कामगार बचेगा। इस नारे को लेकर सभी रेलकर्मियों को राष्ट्रहित और सच की राह पर चलने वाले संगठन के बैनर तले एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। तभी सही मायनों में मजदूर दिवस मनाने का उद्देश्य पूरा हो पाएगा।

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