डॉ. आर.पी. भटनागर,
संपूर्ण देश में चुनावी सरगर्मी तेज है। नयी लोकसभा के लिए सदस्यों का चुनाव हो रहा है। तमाम राजनीतिक दल बड़े-बड़े वादों के साथ वोटरों को लुभा रहे हैं। कई बड़े नेताओं की इज्जत दांव पर लगी हुई है। दांव पर लगी हुई है। जो नेता राष्ट्रीय एकता के दावे करते थे वही आज जात-पांत के नाम पर वोट मांग रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिस उद्देश्य को लेकर विश्व प्रसिद्ध लोकतंत्र की नीव पड़ी थी उनको कहीं न कहीं लुप्त होते जा रहे हैं। सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद वह शहीदों की कुबानियों और बलिदान के दम पर देश आजाद हुआ था। गुलामी की जंजीरों से मुक्त होकर देश की जनता को अपनी सरकार चुनने का अधिकार मिला। जनता एक ऐसी सरकार का गठन चाहती है जो देश का समग्र विकास कर सके। देश का विकास तभी संभव है जब देश के प्रत्येक गरीब से गरीब नागरिक का विकास हो। उसे दो वक्त की रोटी, रहने को घर, बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं मिले। बच्चों को उत्तम शिक्षा मिले, कोई कुपोषण का शिकार न हो। सभी को समान अवसर मिले, कोई बेरोजगार न रहे। परंतु वर्तमान में जिस तरह राजनीतिक दल इन मुख्य उद्देश्यों को दरकिनार कर अपने स्वार्थ और वोट हासिल करने के लिए विभिन्न हथकंडे अपना रहे हैं, उससे देश की प्रगति नहीं हो सकती। समाज को बांटकर अपनी रोटियां सेंकने का यह धंधा देश की जनता को समझ में आना चाहिए। प्रत्येक मतदाता को अपना प्रत्याशी चुनने के समय संबंधित राजनीतिक दल और उसके चरित्र का आकलन जरूर करना चाहिए। लुभावने वादों को दरकिनार कर देश के समस्त विकास पर ध्यान देना चाहिए। मतदाताओं को देश में जातपांत का जहर उगलने वाले विषधरों से सावधान रहना चाहिए। राष्ट्र की एकता, उसका हित सर्वोपरि होता है। पांच वर्षों के लंबे अंतराल के बाद मिलने वाले अपने मत के अधिकार का उपयोग बहुत सोच-समझकर करना होगा तभी राष्ट्र का और जनता का कल्याण संभव है।