संपादकीय : चुनाव से पहले आत्ममंथन जरूरी है…

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डॉ. आर.पी. भटनागर,

चुनाव एक संवैधानिक प्रक्रिया है और भारत जैसे लोकतंत्र में इसका बड़ा महत्व है। अभी पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बज चुका है। चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का या फिर चाहें संगठनात्मक ही क्यों न हो, मतदाताओं को अपना वोट डालने से पहले आत्ममंथन करना चाहिए। लच्छेदार भाषण, जाति, धर्म, संप्रदाय से प्रभावित न होकर राष्ट्रहित का ध्यान रखना जरूरी है। जिस तरह हम बाजार से सामान खरीदते वक्त, बच्चों के विवाह के समय तमाम तरह की जानकारी पूरी बारीकी से हासिल करते हैं जिससे हम सही चुनाव कर सकें तो फिर राष्ट्र या संगठन के चुनाव के समय लापरवाही या उदासीनिता क्यों? नेताओं का चरित्र, संगठनों की नीतियां, ईमानदारी, देशप्रेम, मानवता की भावना, जैसे मापदंडों को दरकिनाकर क्यों कर दिया जाता है। इस ओर हमें ध्यान देने की जरूरत है। कुशल नेतृत्व और अच्छी टीम का होना बहुत जरूरी है। कुटिल चाल चलकर अपने बुजुर्गों को अपमानित कर सत्ता हासिल करने वाले लोग किसी का भला नहीं कर सकते। वे केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि में ही लगे रहेगें इसमें लेश-मात्र भी संदेह नहीं होना चाहिए। ऐसे लोग सिर्फ झूठ-फरेब का सहारा लेकर गुमराह करने में माहिर होते हैं। सच्चाई की राह अपनाने वाले निस्वार्थ रूप से मानवसेवा में लगे रहते हैं। सच की राह पर चलने वाले कभी विचलित नहीं होते। रास्ते में आने वाली हर बाधा को वे पार करने की क्षमता रखते हैं। अपने प्रिय भारत देश से प्यार करने वाले तिरंगे झंडे को ही अपनाते हैं अन्य कोई भी झंडा उन्हें रास नहीं आता। चुनाव का समय नजदीक आते ही कुछ संगठन बरसाती मेंढक की तरह फुदकने लगते हैं। शो-बाजी, लच्छेदार भाषणों की टर्र-टर्र सुनाई देने लग जाती है। ऐसे समय में मतदाताओं को यह सोचना चाहिए कि पिछले पांच सालों में उन्होंने क्या किया। उनके हकों के लिए कौन लड़ा, किसने निस्वार्थरूप से उनके और उनके बच्चों के भविष्य को संवारा है। इन सभी पहलुओं पर आत्ममंथन जरूरी है। मतदाताओं को अपना बहुमूल्य वोट देने से पहले एक कसौटी, एक मापदंड तय करना चाहिए और उसमें खरा उतरने वालों को ही चुनना चाहिए। इसी में देश का भला है, समाज का भला और हम सबका भला है।

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