एक रेल ठेका मजदूर और एक रेल कामगार दोनों को मिलने वाली सुविधाओं व उनको प्रदत्त अधिकारों में जमीन आसमान का अंतर है। ठेकेदार मजदूरों का हर तरह से शोषण करता है। ऐसा लगता है जैसे गुलामी का दौर 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी कायम है। नियम कायदे-कानूनों की सरे-आम धज्जियां उड़ा दी जाती हैं।
ठेकेदार एक निरंकुश शासक की तरह उन पर राज करता है क्योंकि मुख्य नियोक्ता होने का फर्ज रेलवे अधिकारी पूरा नहीं करते। ठेकेदार से सांठ-गांठ रहती है। या यूं कहा जाए कि वे खरीद लिए जाते हैं तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। नोटों से मुंह इतने भरे होते हैं कि वे बिना कुछ बोले अन्याय देखकर भी आंखे मूंद कर बैठे रहते हैं। यहां बात आती है संगठन की एक दमदार यूनियन की जो वहां नहीं होती। हम रेलकर्मचारी बहुत ही भाग्यशाली हैं कि हमारे अधिकारों की रक्षा करने के लिए सीआरएमएस / डब्ल्यूसीआरएमएस जैसे मजबूत कवच और कुंडल हैं, ब्रह्मास्त्र है। यह कल्पना करके ही सिहरन सी होने लगती है कि हमारे पास अगर यह नहीं होते तो रेल अधिकारी भी निरंकुश ठेकेदार की तरह हम रेल कामगारों को गुलाम बना देते। संगठन है तो हमारा स्वाभिमान है।
आज हम यह भूल जाते हैं कि सीआरएमएस / डब्ल्यूसीआरएमएस जैसे मजबूत मान्यता प्राप्त संगठनों के कारण ही हमें अनगिनत लाभ मिले हैं। यूनियन का मतलब ही हम भूलते जा रहे हैं। यूनियन की ताकत भागीदारी से होती है। जब तक हम यूनियन की गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेंगे, केवल दोषारोपण करते रहेंगे तो कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। ऐसा करके हम जिस शाखा पर बैठे हैं उसी को काटने का काम करते हैं। युनियन कोई निजी संस्था नहीं होती यह हम सभी को समान रूप से प्रदत एक अधिकार है। जहां एक ओर हिटलरशाही के कारण बरबादी की कगार पर खड़े कुछ संगठन हैं वहीं दूसरी ओर सीआरएमएस / डब्ल्यूसीआरएमएस जैसे लोकशाही एवं देशप्रेम से ओतप्रोत संगठन भी हमारे बीच हैं। अगर हमें कुछ हासिल करना है तो हमें इन वट वृक्षों को खाद-पानी देकर और अधिक मजबूत बनाना होगा। गुमराह करने वालों की बातों में न आकर हमें हकीकत समझनी होगी। संगठन का सदस्य बनाना बहुत जरूरी है। कल हम में से कोई भी संगठन का बड़े से बड़ा पदाधिकारी बन सकता है। सदस्यता से ही संगठन की पहचान बनती है। संघर्ष के दम पर ही कुछ हासिल किया जा सकता है। जब तक हम एकजुट होकर संघर्ष के मैदान में नहीं उतरेंगे और अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग अलापते रहेंगे तक तब यह बहरी सरकार और प्रशासन कुछ सुनने वाले नहीं हैं। ये दोनों घात लगाए तैयार बैठे हैं कि कब मान्यता प्राप्त संगठन कमजोर हों और वे कामगार की गर्दन दबोच लें। हमें इनके मंसूबों पर पानी फेर कर सीआरएमएस / डब्ल्यूसीआरएमएस जैसे संगठनों को मजबूत करना ही होगा। वरना आगे आने वाली पीढिय़ां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। जागो कामगारों जागो! वक्त की नजाकत को समझो। एक सुर में सिंहनाद कर अपनी मांगों को हासिल करो।