संपादकीय : मेरा भारत महान…

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डॉ. आर.पी. भटनागर,
जब देश गुलाम था और नागरिकों के साथ पशुतुल्य व्यवहार किया जाता था, और हर जगह ”भारतीय और कुत्तों को इजाजत नहीं है” लिखा रहता था, और महात्मा गांधी जी को प्रथम श्रेणी के रेल डिब्बे से ढकेल के बाहर फेंक दिया, तब बापू ने मन में ठान लिया कि इन गोरों को भी हमें अपने देश से बाहर ढकेल फेंकना है और यह इतना बड़ा कार्य सत्य और अहिंसा के बल बूते पर ही हो सकता है। अंतत: 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ। आदि काल से ही भारत सर्व श्रेष्ठ राष्ट्र रहा है और हमेशा से इसको सोने की चिडिय़ा कहा गया। पौराणिक संस्कृति जो हजारों वर्षों से चली आ रही है उसका कोई सानी नहीं है। शायद भारत के आदिकाल में वर्ण व्यवस्था के गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर वर्णित हो। भारत वर्ष के क्षत्रियों का विश्व में कोई मुकाबला नहीं। एक से एक महारथियों से इतिहास भरा पड़ा है, इसी प्रकार वैश्य जाति जिन्होंने विश्व भर में अपनी व्यापार कुशलता का सिक्का जमाया। पढऩे, पढ़ाने में ब्राह्मणों में एक से एक प्रकाण्ड पंडित ज्ञानी पुरुष हुए जिन्होंने आदिकाल से उत्पन्न ईश्वरीय ज्ञान चारों वेदों को कंठस्थ किया था। इन वेदों को भारत से जर्मनी लोग ले गए जो आज विज्ञान में सब से आगे है। इसी प्रकार चौथा वर्ग अपनी हस्त कला में इतना कुशल था जो ढाके की मलमल जैसे कपड़ा तैयार कर लेता था ओर ताज महल जैसी इमारत बनाने की कुशलता रखता था। सच में कोई शक नहीं कि हमारा भारत महान है और हम को उस पर अभिमान है। हम धर्म, भाषा, प्रांत, जाति के भेदभाव के बंधन को काटकर एक सूत्र में बंधकर, आज की आवश्यकतानुसार कड़ा परिश्रम कर भ्रष्टाचार को दूर भगाकर देश की उन्नति में लग जाएं ओर अपने स्वार्थ की चिंता खुदा पर छोड़ दें ईश्वर सबका भला करेगा। फिर देखें हमारा देश फिर से वही सोने की चिडिय़ा बनता है और हम सीना तानकर सिर उठाकर कह सकते हैं, ”हमारा भारत महान”।
भारतीय रेलों को देश की नाडियां माना जाता है। जिस प्रकार शरीर में रक्त संचार के लिए नाडिय़ों का होना आवश्यक है और उसी से शरीर का स्वास्थ्य बना रहता है इसी प्रकार देश के स्वास्थ्य, प्रगति एवं उन्नति के लिए भी रेलों का सही संचालन अतिआवश्यक है। सेना देश की रक्षा करती है ओर उसी की भांति रेल विभाग अति महत्वपूर्ण विभाग है। रेल 24 घंटे चलती है, इसके कर्मचारी शहरों से दूर जंगलों में कष्टमय अप्राकृतिक दशाओं में, कड़ी विषम परिस्थितियों में, जलवायु विरोधी दशाओं में और जीवन के खतरों से लड़ते हुए अपनी नौकरी करते हुए देश की सेवा करते हैं। फौज तथा रेल सेवा देश के आवश्यक एवं विश्वासनीय अंग होने चाहिए। सरकार को इन दोनों विभागों को सही एवं मजबूती के साथ चलाने की जिम्मेदारी अपने ही हाथों में रखनी चाहिए न कि हर वक्त इन विभागों में ठेकेदारी लाने की बात करनी चाहिए इससे केवल कुछ लोगों का स्वार्थ सिद्ध हो सकता है, रेल एवं देश का भला नहीं हो सकता है। यह सीधा-सीधा अपना सरदर्द निकालकर ठेकेदारों को देना तथा अपना उल्लू सीधा करना है। जहां-जहां ठेका नहीं देना है वहां पर भी ठेका दिया जा रहा है। उस कार्य को भी जो नियमित स्वाभाव का है, और नियमित कर्मचारियों द्वारा उत्तम रूप से किया जा रहा है, उसे भी ठेके पर दिया जा रहा है। जहां-जहां ठेकेदारी नहीं हैं वहां-वहां भी ठेकेदारी लाने की सोचना रेलवे संचालन को कमजोर करना है और देश को हानि पहुंचाना है। कामगारों का भी भारी शोषण करना है क्योंकि उनके कानूनों का भी पालन नहीं हो रहा है।
एनएफआईआर / सीआरएमएस / डब्ल्यूसीआरएमएस जैसे संगठन समय-समय पर कामगारों की आवाज उठाते आए हैं। बहुत कुछ हासिल भी हुआ, बहुत कुछ बाकी है। परम पूज्य डॉ. बाबा साहब अंबेडकर द्वारा दिए गए तीन मूल मंत्रों (1) शिक्षित भव (2) संगठित भव (3) संघर्ष करा को लेकर ही मजदूर आंदोलन को और अधिक शक्तिशाली बनाया जा सकता है और अपने अस्तित्व को कायम रखा जा सकता है।

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