मजदूर की कलम से…टायलेट एक व्यथा

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दादर मध्य रेलवे का महत्वपूर्ण स्टेशन है। प्लेटफार्म नं. 6 पर दो प्रतिक्षालय है एक उच्च श्रेणी टिकट धारकों के लिए दूसरा द्वितीय श्रेणी टिकट धारकों के लिए। दादर स्टेशन का सौंदर्यीकरण किया गया। सजाया संवारा गया। बाहरी मेकअप अच्छा है परंतु असली तस्वीर इन दोनों प्रतिक्षालयों का अवलोकन करने से साफ हो जाती है। स्टेशन की साफ-सफाई का काम कॉन्ट्रेक्ट पर दिया गया है। परंतु टायलेट्स की साफ-सफाई पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। माननीय रेलमंत्री श्री सुरेश प्रभु का आना-जाना यहां लगा रहता है इसलिए प्लेटफार्म, जहां उनके पग पड़ते हैं, को एकदम मिरर फिनिश रखा जाता है वो भी केवल प्लेटफार्म नं. 6 बाकी प्रभु के पग पडऩे की बाट जो रहे हैं। शायद प्रभुजी ने प्रतिक्षालयों का निरीक्षण नहीं किया। यदि किया भी होगा तो उस समय के लिए उन्हें चकाचक कर दिया होगा। उच्च श्रेणी प्रतिक्षालय का टॉयलेट या दूसरी भाषा में वॉश रूप एक तो बहुत छोटा है। दो आदमी भी वहां खड़े नहीं हो सकते। मूत्रालय, वॉश बेसिन सटे हुए। एक आदमी पेस्ट या अन्य क्रिया कलाप करता हुआ मूत्रालय के उपयोग करते हुए से टकरा जाता है। ऊपर से वहीं छोटी सी जगह में लगे दर्पण में देखकर बाल संवारने के लिए कोई आ जाए तो हालत बहुत गंभीर हो जाती है। मूत्रालय का उपयोग कर रहा आदमी दर्पण की आंखों से पूर्ण रूप से बचने के लिए बिल्कुल सिकुड कर रह जाता है। जगह बहुत कम तो है ही साथ ही वहां आए दिन वॉश बेसिन चोक-अप का आलम बना रहता है। इतनी गंदगी रहती है कि उच्चे श्रेणी टिकट धारक भारतीय रेलवे को कोसे बिना नहीं रहता है। यही हाल द्वितीय श्रेणी प्रतिक्षालय का भी है। वहां जगह तो उपयुक्त है परंतु साफ-सफाई का वही आलम है। कॉन्ट्रेक्ट सिस्टम की पोल खुलकर सामने नजर आती है। इस भ्रष्ट सिस्टम में सुधार करने का बीडा किसी को तो उठाना ही होगा। प्लेटफार्म नं. 4 और 5 पर बने शौचालयों की हालत और भी बदतर है।
एक और समस्या है जहां एक ओर सरकार महिलाओं को बराबरी का दर्जा और न्याय दिलाने की बात करती है वहीं दादर प्रतिक्षालयों में कार्यरत महिला कर्मचारियों के लिए चेंजिंग रूप तक नहीं है। वे बेचारी किन दुश्वारियों से गुजरतीं हैं वह बखान करना तो मुश्किल है परंतु प्रभु कब उनकी फरियाद सुनते हैं यह उनकी किस्मत है।

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