डॉ. मुकेश गौतम,
”रेल के माध्यम से जीवन दर्शन प्रस्तुत करती प्रसिद्ध कवि डॉ. मुकेश गौतम की एक कविता….”
हर कोई जीवन को जानने का दावा करता है
और जीवन की परिभाषा में बस इतना कहता है कि-
जो पैदा हुआ है वह एक दिन जरूर मरता है।
कोई कहता है कि जीवन एक जंग है
कोई कहता है कि जीवन एक मेलाहै
कोई कहता है कि जीवन एक जुआं है
किसी के लिए जीवन एक जेल है
किसी के लिए जीवन एक खेल है
लेकिन मुझे लगता है कि जीवन
दो पटरियों पर दौड़ती हुई भारतीय रेल है ।
ईश्वर ने मनुष्य को जीवन रूपी ट्रेन का
जितनी सांसों का टिकट दिया है,
आदमी कितनी भी कोशिश कर ले
उस से आगे एक सांस का सफर भी नही किया है।
हर्ट रूपी इंजन जीवन रूपी ट्रेन को
धक-धक करते हुए मंजिल की तरफ बढ़ाता है,
परन्तु ईश्वर का सिंग्नल अगर रेड हो जाये तो उसे कोई ग्रीन नही कर पाता है।
जीवन के इस सफर में कोई छोटा, कोई बड़ा
कोई पास तो कोई फेल है
इसलिए कहता हूं कि
जीवन दो पटरियों पर दौड़ती भारतीय रेल है।
सुख और दुख जीवन की दो पटरियां है
शरीर के अंग जीवन रूपी ट्रेन के डिब्बे है,
जीवन रूपी ट्रेन के ये डिब्बे जब तक सुरक्षित और जवानी की स्पीड नही पकड़ते है,
माँ-बाप गार्ड की भूमिका में हमेशा पीछे खड़े नजर आते है।
यूं तो कुछ लोग इन माँ-बाप रूपी गार्ड को वृद्धाश्रम रूपी यार्ड में भेज देते है
ऐसे लोगो के दिमाग से यह विचार कहीं खो जाता है कि-
एक निश्चित सफर के बाद ऐसे युवाओं को भी ऐसे की किसी यार्ड में आना होता है।
जीवन रूपी ट्रेन में बीमारियां तकनीकी खराबी है
इन्हें समय पर ठीक करना जरूरी है,
वरना तो जीवन का मज़ा ही चला जाता है
और कई बार तो जीवन यात्रा पर समय और मंजिल से पहले ही विराम लग जाता है।
यूं तो कुछ लोग तेज गति से जीवन के अंतिम स्टेशन पर पहुंच जाते है
लेकिन यात्रा ऐसी करते है कि हर सहयात्री के दिल मे बस जाते है ।
जीवन के इस सफर में कोई पैसेंजर तो कोई राजधानी मेल है
इसलिए कहता हूं कि जीवन दो पटरियों पर दौड़ती हुई भारीतय रेल है।
इस से पहले की जीवन रूपी ट्रेन अंतिम स्टेशन पहुंचे या की उस पर ब्रेक लग जाये
आओ एक-दूसरे के काम आए
जीवन के सफर को सुखद एवं सफल बनाये।