डॉ. आर.पी. भटनागर,

हाल ही में मुजफ्फरनगर के पास खतौली में कलिंग उत्कल एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। कई यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तथा अनेकों घायल अवस्था में हैं। सर्वप्रथम हम दुर्घटना में मारे गए लोगों की आत्मा की शांती हेतु ईश्वर से प्रार्थना करते हैं तथा उनके परिवारजनों के साथ गहरी संवेदना व्यक्त करते है।

इसे संजोग कहा जाए या संरक्षा की अवहेलना पिछले तीन वर्षों के दौरान तीन सौ से भी अधिक छोटे बड़े रेल हादसे हुए हैं। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। एक ओर बुलेट ट्रेन चलाने और स्टेशनों को निजी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है, वाई-फाई के नाम पर बड़ी धन राशि खर्च की जा रही है वहीं दूसरी ओर वर्तमान संसाधनों जिनमें मुख्य रूप से ट्रैक और कोचेस की मरम्मत एवं रखरखाव के लिए फंड मुहैया करने में ऑपरेटिंग रेशियो का उलाहना देकर कटौती की जाती है। मैटेरियल की भारी कमी है जो उपलब्ध कराया जाता है वो भी दोयम दर्जे का। सप्लायर और अधिकारियों की सांठ-गांठ के चलते बाजार भाव से अधिक मूल्य और गुणवत्ता भी नहीं। रेलवे में भर्ती पर रोक लगा रखी है। वर्कलोड बढ़ता जा रहा है परंतु स्टाफ की भर्ती के स्थान पर कटौती करने के नित नए फरमान जारी किए जा रहे हैं। संरक्षा से संबंधित कोटियों में डेढ़ लाख से भी अधिक रिक्तियां हैं। सुरक्षित रेल परिचालन की जिम्मेदारी उठाने वाले रेलकर्मी अत्यधिक वर्कलोड के कारण तनावग्रस्त अवस्था में कार्य कर रहे हैं। मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, पदोन्नति के अवसर नागण्य हैं, 10 वर्षों के अंतराल के बाद मिलने वाले वेतन आयोग ने भी रेलकर्मी के जीवन स्तर को सुधारने की कोई भी सकारात्मक सिफारिश नहीं की। रेल-आवासों की दशा शोचनीय है, मेडिकल सुविधाओं में अनेक खामियां हैं, रेस्ट रूमï्स, रनिंग रूमï्स की हालत संतोषजनक नहीं है। फिर भी रेलकर्मी अपनी क्षमता से अधिक कार्य का निष्पादन करता है। निजीकरण  और आऊटसोर्सिंग को बढ़ावा देने से हालत सुधरने के बजाए बिगड़ते जा रहे हैं। परंतु सरकार धृतराष्ट्र की तरह भ्रष्ट साबित हो चुकी इस व्यवस्था को बढ़ावा देने पर तुली हुई है। शो-बाजी से संरक्षा सुनिश्चित नहीं होती। शरीर को संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। मेकअप कर लेने से चेहरे की झुर्रियां छुपाई जा सकती हैं परंतु हकीकत नहीं। इसी तरह वाई-फाई और हाई-फाई से रेलवे के चरमराते हुए ढांचे में सुधार होने वाला नहीं है। संरक्षा सुनिश्चित करनी है तो उत्तम गुणवत्ता का मैटेरियल उपलब्ध कराना होगा, रिक्तियों को भरना होगा, नए संसाधनों के लिए अतिरिक्त पदों का सृजन करना होगा, स्टोर्स विभाग की कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाना होगा, निजी लाभों को दरकिनार कर निजीकरण को रेलवे से बाहर करना होगा, रेलकर्मियों की समस्याओं को दूर कर उन्हें तनाव मुक्त करना होगा। तभी संरक्षा में लग रही दीमक नष्ट हो पाएगी। विदेशी दौरों पर जाकर वहां की नकल करने से बेहतर होगा कि अपने देश का भ्रमण कर यहां की भौगोलिक स्थिति का जायजा लिया जाए। यहां के वर्तमान ढांचे का अवलोकन कर उसमें सुधार किया जाए। बड़ी संख्या में मौजूद रेलअधिकारियों को एसी चेंबरों से निकलकर कार्य स्थलों पर जाकर अपने पद की सार्थकता सिद्ध करनी होगी। तभी यह मौत का तांडव बंद हो पाएगा। रेलमंत्री त्यागपत्र दें या रेलवे बोर्ड के चेयरमैन, संरक्षा सिस्टम में सुधार करने और प्रभावकारी नीतियां बनाने से ही सुनिश्चित हो पाएगी।

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