माटुंगा वर्कशॉप अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए संपूर्ण भारतीय रेलवे में अपनी एक पहचान बना चुका है। यहां बड़ी संख्या में महिला कर्मचारी कार्यरत हैं जो पूरी लगन और समर्पण के साथ अपनी ड्युटी निभातीं हैं। अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए अपनी ड्युटी का निवर्हन करना एक बड़ी चुनौती होता है जिसे वे बखूबी अंजाम देती हैं। इतने बड़े वर्कशॉप में इनको मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। पिछले कई वर्षों से यहां इनके छोटे बच्चों के लिए पालना घर बनाने की मांग की जा रही है जिसका प्रावधान फैक्ट्री एक्ट के अनुसार होना ही चाहिए। परंतु तमाम तरह के आश्वासनों के बावजूद अभी तक कुछ भी नहीं हुआ। सिर्फ कोरे आश्वासन ही दिए गए। महिला कर्मचारियों के लिए उचित संख्या में टॉयलेट, चेङ्क्षजग रूम आदि नहीं हैं। जो हैं वे भी संतोषजनक स्थिति में नहीं हैं। साफ-सफाई की उचित व्यवस्था का अभाव है। यह बड़े खेद का विषय है कि कई मामलों में महिला कर्मचारियों के साथ उचित व्यवहार नहीं किया जाता एवं लिंग भेद किया जाता है। कोई महिला शिकायत सेल न होने के कारण पीडि़त महिला कर्मचारी अपनी शिकायत कहां दर्ज करे? वह बेचारी शर्म के मारे चुप बैठ जाती है। एक ऐसे ही मामले में एक महिला कर्मचारी को जानबूझ कर प्रताडि़त करने के उद्देश्य से उसका ट्रांसफर एक ऐसी शॉप में कर दिया गया जहां बैटरियों का रख-रखाव होता है और एसिड भरने और निकालने का कार्य होता है। जबकि वह दमा की मरीज है। डॉक्टर ने भी प्रमाणित किया है कि वह अम्बलीय वातावरण में काम नहीं कर सकती। उसकी जान के साथ खिलवाड़ करना कहां तक उचित है। सीआरएमएस के प्रयासों से उसका ट्रांसफर किया गया परंतु उसके पेरेंट कैडर में नहीं। वहां भी सौतेला व्यवहार एवं लिंग भेद। एक एसएसई प्रशासन द्वारा निकाले गए आदेशों को दरकिनार करते हुए उसे लेने से इंकार कर देता है। रिमार्क भी ऐसा लिखता है जिससे महिला सशक्तिकरण तो दूर की बात है समानता के अधिकार की धज्जियां उड़ा दी जाती हैं। लिंग भेद किया जाता है। वह बेचारी महिला दर-दर ठोकरें खाने पर मजबूर कर दी जाती है। ऊपर से धमकियां दी जाती हैं – प्रमोशन नहीं मिलेगा, इंसेंटिव नहीं मिलेगा, जिसके पास जाना हो जाओ। मानवता को जिस तरह तार-तार किया जाता है इससे बड़ा कोई और उदाहरण नहीं हो सकता। ऐसे ओर भी कई मामले हैं। यह समझ से परे है कि प्रशासन भी इस ओर चुप्पी साधे बैठा रहता है। यहां सरकार और प्रशासन द्वारा महिला सशक्तिकरण के कोरे वादों की पोल खुलकर सामने आ गई है। शीघ्र अति शीघ्र यदि प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो स्थिति और खराब हो सकती है। सैकड़ों पुरुष कर्मचारियों के बीच कार्य करने वाली इन महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना और उनका उत्पीडन रोकना प्रशासन की जवाबदारी है। महिला शिकायत सेल की स्थापना शीघ्र होनी चाहिए जहां वे बेखौफ होकर अपनी शिकायत दर्ज कर सकें। एक और उपाय यह भी है कि वहां कार्यरत सभी महिला कर्मचारियों को एक शॉप में एक विशेष कार्य के लिए नियुक्त कर दिया जाए। झांसी कारखाने में यह प्रयोग सार्थक रहा है। महिला कर्मचारियों का उत्पीडन करने वालों को यह बात भली भांति समझ में आ जानी चाहिए कि वे दुर्गा, काली, लक्ष्मी के आगे शीश नवाते हैं वे महिला शक्तिपुंज ही है। महिला काली-दुर्गा का रूप धारण कर असुरों का संहार करने की शक्ति रखती है उसे ऐसा करने पर मजबूर नहीं किया जाए तो बेहतर होगा।