दादर स्टेशन का ट्रैफिक सुधरा
मुंबई, दादर जिसका मराठी अर्थ सीढी है। इस ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन की महत्ता को परिलक्षित करता है। पूर्व में यह मुख्य मुंबई द्वीप को अन्य आसपास के द्वीपों से जोडऩे का साधन था। दादर स्थित पुर्तगाली चर्च, सिद्धिविनायक मंदिर, चैत्यभूमि, स्वामीनारायण मंदिर एवं शिवाजी पार्क इस स्टेशन की महत्ता को और अधिक बढ़ाते हैं। दादर स्टेशन को पूर्व और पश्चिम रेलवे लाइन द्वारा दो भागों में बांटा गया है। दादर पूर्व को दादर सेंट्रल या दादर टीटी (खोदाद सर्किल) के नाम से जाना जाता है। दादर टीटी यहां पूर्व में चलने वाली दादर ट्रॉम टर्मिनस की याद दिलाता है।
दादर पश्चिम स्टेशन साइड में लगा हुआ ट्रैफिक नहीं है परंतु दादर पूर्व में प्लेटाफार्म नं. 6 के साथ सटा हुआ ट्रैफिक है। मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों के हाल्ट और टर्मिनस होने के कारण यहां पहले ट्रैफिक अति व्यस्त तथा अस्त-व्यस्त अवस्था में था जिसके कारण यात्रियों एवं आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। ट्रैफिक को सुचारू ढंग से नियंत्रित करने में यातायात पुलिस के पसीने छूट जाते थे। बड़े-बड़े नेताओं से लेकर आला अधिकारी और मीडिया से जुड़े अनेक प्रसिद्ध लोगों का यहां आना-जाना लगा रहता है परंतु शायद किसी ने यहां अस्त-व्यस्त ट्रैफिक सिस्टम को सुधारने की सुध तक नहीं ली। हमेशा की तरह अपने सामाजिक दायित्वों को निभाने वाले जाने माने वरिष्ठ पत्रकार प्रफुल्ल मारपकवार ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी। उन्होंने माननीय मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस एवं पुलिस कमिश्नर पढसलगीकर से मिलकर इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाया एवं महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। मुख्यमंत्री जी ने उनकी बात को तवोज्जो देते हुए तुरंत एक टीम का गठन किया जिसमें अमितेश कुमार एवं डॉ. सौरभ त्रिपाठी जैसे अधिकारी शामिल थे जिन्होंने ट्रैफिक को व्यवस्थित करने का एक प्लान तैयार किया। इसमें वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर निकम एवं सब इंस्पेक्टर गुंजाल का भी अहम योगदान रहा। शीघ्र ही इस पर अमल हुआ और आज जो स्थिति है उसके जनक प्रफुल्ल मरपकवार ही हैं। एक जागरुक पत्रकार का आदर्श उदाहरण। ऐसे पत्रकार कम ही देखने को मिलते हैं। इसके पहले भी उन्होंने अनेकों समाजोपयोगी कार्यों को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अनेक लोगों विशेषकर गरीब तबके के लोगों की मदद करने में वह हमेशा आगे रहते हैं। मानवता की सेवा और देश प्रेम का जज्बा उनको विरासत में मिला है। उनके पिता श्री चिंतामन राव मारपकवार एवं जाने-माने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे थे। यदि देश का प्रत्येक नागरिक इस तरह की जागरुकता दिखाते हुए अपने राष्ट्र की प्रगति एवं सुधार का जज्बा पैदा करे तो हमारा देश संपूर्ण विश्व में अव्वल हो जाएगा इसमें कोई संदेह नहीं है।