आजादी के इतिहास का गवाह सुवंसा रेलवे स्टेशन है। आधुनिक युग में भी रेलवे स्टेशन का विकास नहीं हो पाया। रेल की जर्जर कालोनी में कर्मचारी रहने के बजाय किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं। रेलवे स्टेशन पर नियमित सफाई न होने से गंदगी का अंबार लगा हुआ है। प्लेटफार्म पर गड्ढा होने से आए दिन यात्री गिरकर चोटहिल हो रहे हैं। इसके बावजूद रेल प्रशासन उदासीन बना हुआ है। प्रतापगढ़-वाराणसी रेलमार्ग पर स्थित सुवंसा रेलवे स्टेशन पर भले ही कई पैसेंजर ट्रेनें रुकती हैं। मगर स्टेशन पर यात्रियों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं है। स्टेशन के प्लेटफार्म का शेड जर्जर हो चुका है। बरसात के दिनों में शेड के नीचे खड़े यात्री भीग जाते हैं। स्टेशन की जर्जर बेंच पर यात्री बैठने को मजबूर हैं। नए भवन के एक कमरे में कंट्रोल रूम व टिकट काउंटर से टिकट वितरण होता है। स्टेशन का प्लेटफार्म रेलवे ट्रैक से नीचे है। प्लेटफार्म पर ट्रेनों के खड़ी होने के दौरान लोगों को चढऩे में काफी दिक्कतें होती है। कई बार तो बुजुर्ग यात्री ट्रेन में चढऩे के दौरा गिरकर चोटहिल हो चुके हैं। यात्री प्रतीक्षालय पूरी तरह जर्जर हो चुका है। स्टेशन पर पेयजल की सुविधा नहीं है। स्टेशन का शौचालय बदहाल पड़ा है। स्टेशन पर खंभे में लगी ट्यूब लाइट गायब है। शाम को स्टेशन पर अंधेरा रहता है। स्टेशन से आने जाने वाले यात्रियों की सुरक्षा भगवान भरोसे है । इस बावत सहायक स्टेशन मास्टर सुनील कुमार कनौजिया का कहना है कि स्टेशन पर जो भी समस्याएं हैं। इसकी रिपोर्ट अफसरों को कई बार भेजी गई है।