अंत्योदय-हमसफर, तेजस का यह हाल है
तो बुलेट ट्रेन का क्या होगा?
भारतीय रेल को नई ऊंचाइयां प्रदान करने के लिए रेल मंत्रालय नई गाडिय़ां चलाने का ऐलान तो कर देता है, लेकिन वे गाडिय़ां सिर्फ घाटे का सौदा बन कर रह जाती है। कुछ ऐसी ही हालत अंत्योदय तथा हमसफर ट्रेनों की भी ही है। ये गाडिय़ां सुरेश प्रभु के रेल मंत्रित्व काल में शुरु की गई थीं। 13 अगस्त, 2017 को तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने हरि झंडी दिखाकर मुंबई से प.ना के लिए हमसफर तथा गोरखपुर के लिए अंत्योदय एक्सप्रेस को रवाना किया। इसके अलावा एक अन्य गाड़ी जो सुरेश प्रभु के कार्यकाल में बहुत तामझाम से शुरु की गई, वह गाड़ी थी तेजस एक्सप्रेस। इन तीनों गाडिय़ों से रेल विभाग को फायदा कम नुकसान ही ज्यादा हुआ है। हमसफर तथा अंत्योदय का सफर यात्रियों को बहुत महंगा पड़ रहा है, इसलिए ये गाडिय़ां ज्यादातर खाली ही जा रही हैं। अगर ये गाडिय़ां खाली जा रही हैं तो फिर हाल ही में जिस बुलेट ट्रेन का हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा जापान के प्रधाननमंत्री शिजो अबे ने भूमिपूजन किया, उस बुलेट ट्रेन से कितने यात्री हर दिन यात्रा करेंगे। कहा जा रहा है कि सूरत से इन ट्रेनो की मांग की जा रही थी, लेकिन इस मांग को स्वीकार नहीं किया गया। बुलेट ट्रेन को भी मुंबई से दिल्ली तक चलाने का प्रस्ताव कुछ लोगों ने रखा, जिसे भी स्वीकार नहीं किया गया। बुलेट्र ट्रेन को मुंबई से अहमदाबाद तक चलाने का प्रस्ताव आखिर रेल विभाग बगैर जाने बुझे ऐसी गाडियां क्यों चला रहा है, जिसमें यात्री करना यात्रियों के लिए संभव ही नहीं है। सूरत से हर रविवार को चलने वाली अंत्योदय अनारिक्षत एक्प्रसेस इसीलिए खाली चल रही है कि क्योंकि इसका किराया अन्य एक्सप्रेस गाडिय़ों के मुकाबले डेढ़ गुना ज्यादा है। 16 कोचों वाली इस ट्रेन में 1600 बर्थ हैं, जिनमें से मुश्किल से 400 बर्थ ही भर पाती हैं। बांद्रा से पटना जाने वाली हमसफर एक्सप्रेस का ट्रेन का किराया मांग के अनुरुप बढ़ता है, इसलिए मध्यमवर्गीय लोग इस ट्रेन से सफर करने में कतरा रहे हैं। आखिर पश्चिम रेलवे को इस गाड़ी चलाने से क्या फायदा हो रहा है।
अंत्योदय, हमसफर से न तो रेल को फायदा हो रहा है और न ही यात्रियों को, क्या इन ट्रेनों का किराया मेल एक्सप्रेस के मुकाबले 100 रूपए ज्यादा बढ़ाकर चलाया नहीं जा सकेगा, जिससे रेल विभाग को भी फायदा होगा और यात्रियों को इन गाडिय़ों से सफर करने में अपनी जेब को ज्यादा ढीला नहीं करना पड़ेगा। सर्वसुविधायुक्त इन गाडिय़ों की उपयोगिता जब बढ़ेगी, जब इसमें यात्रा करने वालों की संख्या बढ़ेगी। रेल गरीबों की सवारी कही जाती है। ज्यादातर लोग रेल से इसीलिए यात्रा करते हैं कि इससे यात्रा करना उसकी आर्थिक स्थिति के अनुरूप होता है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में हर दिन लगभग 2 लाख लोग यात्रा करते हैं। इन यात्रियों में से कुछ आरक्षण करके सफर करते हैं तो कुछ बगैर आरक्षण वाले डिव्बों में बैठकर सफर करते हैं। रेल विभाग वर्तमान में इस मानसिकता में कार्य करता हुआ दिखायी दे रहा है कि चमक दमक वाली ज्यादा से ज्यादा गाडिय़ां चलयी जाएं। गाडियां के अंदर लक्जरी सुविधाएं देकर टिकट से भारी कमाई की रेल मंत्रालय की योजना पूरी तरह से फेल हो गई है। नई पीढ़ी के 25 प्रतिशत यात्रियों के लिए 75 प्रतिशत लोगी की जेब पर चपत लगाने की रणनीति का ही नतीजा है कि अंत्योदय तथा हमसफर जैसी सर्वसुविधायुक्त गाडिय़ां बाहर से चमक तो रही हैं, लेकिन अंदर से यात्रियों की कमी के दर्द को झेल रही है। रेलवे की तामझाम की यह संस्कृति हर प्लेटफार्म पर देखने को मिल रही है। इलेक्ट्रानिक्स सीढियों की जरूरत न होने पर उसे हर स्टेशन पर बनाया जा रहा है। वाई फाई की आम यात्रियों को कोई जरूरत नहीं है, फिर भी स्टेशनों पर वाई फाई की सुविधा दी जा रही है। हर दिन लाखों की संख्या में यात्रा करने वाले यात्रियों के शौचालय की व्यवस्था करने की ओर ध्यान देकर बेकार के काम में पैसे खर्च करने की नीयत के कारण रेल विभाग की करोड़ों की राशि पानी में जा रही है। रेल मंत्रालय न जाने किसके कहने पर काम कर रहा है। एक तरफ खाली ट्रेने तो दूसरी तरफ आए दिन हो रही रेल दुघर्टनाएं। एक तरफ खराब भोजन तो दूसरी तरफ अन्य अव्यवस्थाओं का अंबार, उस पर विना सोचे समझे महंगी यात्राएं शुरु करने की नीयत, इन सभी हालातों में बुलेट ट्रेन शुरु करने की जिद्द। क्या भारतीय रेल ऐसे ही लोगों के इशारे पर चलेगी। सर्वसुविधायुक्त रेल गाडिय़ों का उद्घाटन करने मात्र से जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती। नई रेल गाड़ी चलाने से पहले इस बात पर चिंतन जरूर होना चाहिए कि क्या इस गाड़ी को शुरु करने से यात्रियों को सहजता से सफर करने का अवसर मिलेगा। खर्चा ज्यादा और आमदनी कम की रणनीति पर जो गाडिय़ां वर्तमान में चलायी जा रही हैं, उन्हें तत्काल बंद कर देना चाहिए। जिस बस, गाड़ी या अन्य साधन से हर दिन नुकसान रहो रहा हो तो आखिर उसे कब तक बर्दाश्त किया जाता रहेगा। मेल एक्सप्रेस हों या फिर अन्य कोई गाड़ी उसमें यात्रियों को दी जीने वाली बेसिक सुविधाएं अगर ठीक होती है तो कोई भी शिकायत नहीं करता। सफर करते समय ज्यादातर यात्री यही चाहते हैं कि गाड़ी में लाइट, पंखे तथा पानी की सुविधा हो। कचरे के डिब्बे की व्यवस्था हो। आजकल मोबाइल चार्जिंग का शॉकेट की व्यवस्था पर भी यात्री जोर देते हैं, इसके अलावा जो एसी में सफर करते हैं, वे चाहते हैं कि एसी,लाइड, पानी के अलावा चादर तकिया, बैलेंकेट की यात्रियों की ओर डिमांड रहती है।
कुल मिलाकर ज्यादातर यात्री मूलभूत जरूरते सफर के दैरान मिलने की उम्मीद करते हैं। इगर ये मूलभूत सुविधाएं चात्रियों को मिले तो किसी तो कोई शिकायत नहीं होगी, लेकिन जो ज्यादा जरूरी नहीं है या जिससे ज्यादा लोगों को लाभान्वित होते हैं, उन सुविधाओं पर ध्यान नहीं के बराबर ही दिया जाता हैथ क्या इसके पीछे यह धारणा तो काम नहीं कर रही कि जो समस्याएं ज्यादा लोगों से जुड़ी हैं, उसे बरकार रखा जाए और जिससे ज्यादा लोगों को फायदा नहीं है, उसको अमल में लाकर उन लोगों को प्रसन्न किया जाए जो फाई वाई जैसी गैर जरुरी सुविधाओं को शुरु रखना चाहते हैं। जो समस्याएं ज्यादा लोगों कसे जुड़ी हैं, उन्हें जानबूझकर हल नहीं किया जाता। मुंबई की लोकल गाडियों में यात्री किस तरह यात्रा करते हैं किया रेल प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं है, फिर भी मेट्रो तथा मोनो ट्रेन चलायी गई, लेकिन ये गाडिय़ों से भी बहुत ज्यादा आय रेल विभाग को नहीं हो पा रही है। इसलिए व्यर्थ के आधुनिकीरण की ओर न जाकर लोकल तथा मेल एक्सप्रेस गाडियों को अच्छी तरह से चलाने के बारे में सोचा जाए और हमसफर, अंत्योदय तथा तेजस जैसी गाडियों को यह कहकर बंद कर देना चाहिए कि इन गाडिय़ों के चलाने का निर्णय गलत था, इसलिए रेल विभाग ने इन ट्रेनों को बंद करने का निर्णय लिया है।