भव्य शाह,
नेता, अभिनेता, बड़े कॉर्पोरेट हम सबकी सुनते हैं। उनके मन की बात हमारे मन तक पहुंचे न पहुंचे, कानों तक तो पहुंचती ही है।
आज किसी ऐसे व्यक्ति के मन की बात सुनते है जो अक्सर कानों तक नहीं आती लेकिन मन को जरूर छू जाएगी। हां ये वही व्यक्ति है जो हमारी सहूलियत के लिए खुद असुविधा झेलते हैं, हमें कहीं देरी न हो जाए इसलिए खुद के समय की परवाह नहीं करता, मुंबई की लाईफलाईन कहलाए जाने वाली रेल के मोटरमैन की। सीएसएमटी से पनवेल गाड़ी ले जाने वाले हमारे मौटरमैन महाशय की और उनके जैसे सारे मोटरमैन की कहानी खुद उनकी जुबानी। मोटरमैन जी का कहना है कि रेलवे में निसंदेह अच्छे बदलाव हो रहे लेकिन बात जब मोटरमैन के सुख, सुविधा और सुरक्षा पर आती है, तब कुछ सवाल हमें उलझा से देते हैं। मोटरमैन के मुताबिक रेल ट्रॅफिकमें बढ़त के कारण समय की पाबंदी पर खरा उतरना काफी मुश्किल हो जाता है। इससे मोटरमैन को समय पर विश्राम नहीं मिलता, नतीजा यह है कि अगली गाड़ी भी देरी से चलती है। हर 400 मीटर पे सिग्नल है, अब मोटरमैन कैब के काम पर ध्यान दे, स्टेशन पर ध्यान दें, ट्रैक पासिंग करते लोगों के प्रति चौकन्ना रहे और सिग्नल भी देखें, ऐसे में मोटरमैन पर काफी दबाव रहता है। इस मानसिक और शारीरिक तनाव के चलते यदि छोटी सी भी चूक हो जाए तो नौकरी से हाथ धो बैठता है हमारा मोटरमैन। दीवाली, ईद, होली, मोटरमैन को न कोई छुट्टी न ही काम में कमी। जरूरी काम, कारणों के वजह से भी छुटी नहीं दी जाती ऐसे में…
मोटरमैन के लिए घोषणा या स्कीम का ग्राउंड लेवल पर इम्प्लीमेंट होना चाहिए वह उस गति से नहीं हो रहा, हालांकी रेलवे में सुधार जरूर आ रहे है। मोटरमैन के काम के सारी तकलीफों का परिणाम यह आता है कि वह अपनी मानसिक और शारीरिक सेहत पर ध्यान नहीं दे पाते और अधिकतर मोटरमैन 60 साल की उम्र तक किसी न किसी तकलीफ का शिकार जरूर बन जाते हैं।
मोटरमैन का सबसे महत्वपूर्ण संदेश, ‘‘रेलवे, यह सिर्फ कर्मचारियों की जिम्मेदारी नहीं है। शासन और हमारे देश की जनता भी हम कामगारों के साथ चले, हम सब मिलकर एक दूसरे का जीवन सुधारे, हमारी रेल और हमारे राष्ट्र को सर्वश्रेष्ठ बनाएं।’’