संपादकीय : क्या हम स्वतंत्र हैं?

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डॉ. आर.पी. भटनागर,

अनेक शहीदों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर भारत माता को परतंत्रता की बेडियों से मुक्त कराया था। परम पूज्य डॉ. बाबासाहब अंबेडकर ने स्वतंत्र भारत के संविधान की रचना करने में मुख्य भूमिका निभाई और अनेक अधिकार भारतवासियों को प्रदान कराए एवं कर्तव्यों का बोध भी कराया। यदि हम वर्तमान परिपेक्ष्य में देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि स्वतंत्रता कहीं खो सी गई है। अधिकारों का उपयोग तभी संभव है जब देश का प्रत्येक नागरिक शिक्षित होगा। वरना बिके हुए मीडिया की चकाचौंध में आम जनता को हकीकत समझ में नहीं आती। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जहां विश्व का साक्षरता प्रतिशत 84 है वहीं भारत में यह 74.04 है। भारत में निरक्षर व्यक्तियों की संख्या सर्वाधिक है। भारत के ग्रामीण इलाकों जहां संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को जानने की बेहद आवश्यकता है वहां निरक्षरता अधिक है। बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव हो तो पूर्ण स्वराज की बात करना बेमानी होगी।

जिस देश में मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी न मिल रही हो, उनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया जाता हो, रोजगार की कोई गारंटी न हो, दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो वहां स्वतंत्रता की कल्पना भी कैसे की जा सकती है। यही हाल सरकारी कर्मचारियों का भी है। 10 वर्षों के अंतराल के बाद वेतन आयोग दिया जाता है और उस पर भी उनको मिलने वाले लाभों को देने में सरकार तानाशाही रवैया अख्तियार कर कुंडली मार के बैठी हो ऐसे में उनके अधिकारों का हनन कर सरकार डॉ. बाबा साहब अंबेडकर द्वारा रचित संविधान की अवहेलना नहीं तो और क्या कर रही है। नित नए तुगलकी फरमान निकालकर उनकी स्वतंत्रता में सेंध लगाने की कोशिश की जा रही है। ऐसे समय में देश के प्रत्येक नागरिक विशेषकर बुद्धिजीवियों को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। ‘‘ढूढोगे अगर तो रास्ते मिलेंगे क्योंकि मंजिलों की फितरत है कि वो खुद चलकर नहीं आती।’’  लेने की चाह तो सब करते हैं कुछ देने की कोशिश करो। समाज का उत्थान करो, जागरूकता की मशाल जलाओ, अपने हृदय में देशभक्ति की ज्योति जलाकर मातृभूमि के प्रति अपना फर्ज अदा करो। खुद मजबूत बनो, तभी परिवार मजबूत होगा, समाज मजबूत होगा, संगठन मजबूत होगा, मजदूर आंदोलन मजबूत होगा, भारतवर्ष मजबूत होगा और अंतत: देश की स्वतंत्रता मजबूत होगी। पूर्ण स्वराज का सपना तभी साकार होगा।

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