कठिन परिस्थिति में भी काम नहीं रुका
कामगार हुए चोटिल, प्रशासन बेखबर
भव्य शाह,
9 जुलाई को हुई भारी बारिश के कारण माटुंगा के कारण माटुंगा वर्कशाप एक विशाल तालाब में तब्दील हो गया। पूरे वर्कशॉप में जल भराव के कारण विकट स्थिति उत्पन्न हो गई। घुटने तक भरे पानी और आवागमन के रास्ते की खस्ता हालत के कारण कई कामगार चोटिल भी हुए। अधिकारी अपने एसी चेंबरों में बैठकर कामगारों की हालत से बेखबर आऊटटर्न की चिंता मोबाइल फोन पर प्रकट कर रहे थे।
एक तो माटुंगा वर्कशॉप में जगह-जगह कचरे के अंबार लगे हैं, स्क्रेप मैटिरियल गले का जंजाल बना हुआ है दूसरी ओर रही – सही कसर पूरी कर दी 70 करोड़ के इंजीनियरिंग कार्य के कॉन्ट्रेक्ट ने। अज्ञात कारणों से कॉन्ट्रेक्टर आधा अधूरा काम छोड़ कर लापता है। जगह-जगह खड्डे खुदे हुए हैं मैटिरियल बिखरा पड़ा है। सूत्र बतातें हैं कि अधिकारी कॉफमो का बहाना कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाल रहे है। कुछ दिन पहले ही टाइम ऑफिस की सीलिंग टूट कर गिर पड़ी थी। गनीमत यह रही कि यह हादसा छुट्टी के दिन रविवार को हुआ वरना किसी कर्मचारी की जान भी जा सकती थी। अधिकतर बिल्डिंग जर्जर अवस्था में हैं। बारिश के दौरान छतों से झरने बहते हैं। मु. कारखाना प्रंबंधक बिल्डिंग का भी हाल बेहाल है। स्ट्रक्चलर ऑडिट न करा कर प्रशासन किसी बड़े हादसे की बाट जोह रहा है।
माटुंगा के कैरेज यार्ड में बड़ी-बड़ी घास और बिखरा कचरा जहरीले सांपों का बसेरा बन चुका है। कई बार यहां के कामगारों ने शंटिंग करते वक्त 5 से 6 फुट लंबे जहरीले सांपों को ट्रैक पर स्वच्छंद विचरण करते हुए देखा है व फोटो भी लेकर अधिकारियों को दिखाई है परंतु कोई भी सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाए गए हैं।
कामगारों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। यार्ड सेक्शन में काम करने वाले जांबाज कामगार अनगिनत समस्याओं से जूझ रहे हैं। कोई कामगार यदि समस्याओं को उजागर करता है तो या तो उसका कार्य पर उपस्थित रहने के बावजूद कार्ड एबसेंट कर दिया जाता है या उसे बेवजह चार्जशीट थमा दी जाती है। शायद रेल अधिकारी यह भूल गए हैं कि भारत अब स्वतंत्र देश है और हिटलरशाही करने वाले अंग्रेज भारत छोड़ चुके हैं। शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने वाले कामगारों को दबाना परमपूज्य डॉ. बाबा साहब अंबेडकर के सिद्धांतों की अवहेलना करना नहीं तो और क्या है।
जिस संस्था या उपक्रम में सच को सच बोलना यदि गुनाह माना जाए तो उसकी प्रगति कभी नहीं हो सकती। कहीं यह परेल वर्कशॉप की तरह माटुंगा वर्कशॉप को भी बंद करने की साजिश तो नहीं? यह एक गंभीर सवाल है। माटुंगा प्रशासन कामगारों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ नहीं सकता। उसे एहतियाती कदम उठाने ही चाहिए।