डॉ. लक्ष्मण शर्मा ‘वाहिद’
बारिश की नन्हीं बूँदों ने,तन मन मेरा भिगो डाला !
सर से उडग़यी लाल चुनर,लाज ने मुझको डुबो डाला !!
भडक़ उठी चिंगारी मन में, धुआँ जिगर से उठता है,,
सीली सीली आँहों में, फूलों का बिस्तर जलता है,,
हूँ पड़ी पलंग पे आज अकेली,नागिन सी डसती रात मुझे,,
सजना की याद रुलाती है,और पल पल,छलती रात मुझे,,
बिजली चमकी,बादल गरजा ,और काँप गयी मेरी काया,,
जब मस्त पवन लागी बहने, फिर भीग गया, मेरा तकिया,,
साँकल न बजा,ऐ बैरी हवा ,दिल और धडक़ने लगता है ,,
हर आहट पे सजना के लिये, मन मेरा मचलने लगता है ,,
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