संपादकीय : चुनाव-लोकतंत्र की नींव

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डॉ. आर.पी. भटनागर

हमारे देश में लोकतंत्र है। संसद हो या विधानसभा प्रत्येक पांच वर्ष के अंतराल के बाद चुनाव होते हैं। चुनाव आयोग पूरी चुनावी प्रक्रिया को निर्धारित करता है एवं सुचारू ढंग से उसे पूरा करने की जिम्मेदारी का वहन करता है। इसी तरह भारतीय रेलवे में भी युनियन की मान्यता हेतु चुनाव होता है। चुनावी समर कोई भी हो उसमें मतदाताओं की मुख्य भूमिका होती है। हमारे देश की यह बिडम्बना है कि चुनावी समर में जातिवाद-व्यक्तिवाद, प्रांतवाद जैसे मुद्दों को अहमियत दी जाती है। समाज के विकास की बात कहीं खो सी जाती है। एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में नेतागण सारी हदों को पार कर देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे यह लोकतंत्र का चुनाव नहीं अपितु व्यक्तिगत चुनाव हो। बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, प्रदूषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी, सड़कें जैसी मूलभूत सुविधाओं जैसे मुद्दों को दरकिनार कर मतदाताओं के साथ भावनात्मक खेल खेलकर उन्हें भ्रमित कर दिया जाता है और हमारे मतदाता सम्मोहन के जाल में फंस जाते हैं। ​

भारतीय रेलवे के कर्णधार हमारे रेलकर्मी विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। अपनी बौद्धिक क्षमता के बलपर वे अति विषम परिस्थितियों में भी सुरक्षित रेल परिचालन कर संपूर्ण विश्व में एक उदाहरण पेश करते हैं। वे बधाई के पात्र हैं। उनकी समस्याओं के बारे में सरकार की नजरअंदाजी सर्वविदित है। उनके वेतन, भत्तों में सुधार, स्वास्थ्य सुविधाओं, रेलवे आवासों, हॉलीडे होम, रेस्ट हाऊस, रेस्ट रूम, रनिंग रूम, शिक्षा सुविधा आदि पर रेल मंत्रालय व प्रशासन चुप्पी साध के बैठा रहता है।

एनएफआईआर व उससे संलग्न युनियनें 1956 से सरकार और प्रशासन के सामने रेलकर्मियों की छोटी से छोटी समस्या और हित को पूरी मजबूती के साथ पेश करते आएं हैं। सततïï् संघर्ष किया है। दास कमेटी, मुन्नाभाई ट्रिब्यूनल आदि के समक्ष रेलकर्मियों का पक्ष सिर्फ और सिर्फ एनएफआईआर ने रखा। आज जो भी लाभ, सुविधाएं रेलकर्मियों को मिल रहे हैं। उन्हें हासिल करने में एनएफआईआर के नेतागणों ने खून-पसीना बहाया है। हां अपने प्यारे राष्ट्र को धोखा कभी नहीं दिया तिरंगा अपनाया और उसकी हर कीमत पर लाज रखी। पाकिस्तान से युद्ध हुआ या चीन से राष्ट्र के साथ गद्दारी कभी नहीं की। इन सबका जिक्र इसलिए यहां किया गया है कि रेलकर्मी भी मतदाता बनकर मान्यता चुनाव व सोसायटी चुनाव आदि में हिस्सा लेते हैं। वे बुद्धिजीवी वर्ग में आते हैं। उन्हें जागरुक मतदाता बनना ही चाहिए। अब उने और उनके परिवार के भविष्य का सवाल है। उन्हें यह एहसास होना चाहिए। उनका भला किसमें निहित है।

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