कानपुर, इतिहास और विचारधाराओं पर बहस पुरानी है लेकिन अब नॉर्थ सेंट्रल रेलवे भी इस झगड़े में उलझता दिख रहा है। बीते दिनों कानपुर सेंट्रल प्रशासन ने ऐलान किया था कि स्टेशन के बाहर पार्क में कानपुर के महानायकों की मूर्तियां लगाई जाएंगी। इसमें सबसे आगे महाभारत के चरित्र दानवीर कर्ण होंगे। तर्क दिया गया कि कर्ण से ही कर्णपुर हुआ, जो बाद में कानपुर हो गया। हालांकि, डीएवी कॉलेज के प्राचीन इतिहास विभाग ने यह तर्क खारिज कर दिया है। इतिहासकारों का कहना है कि आखिर क्यों कर्ण को इतनी तवज्जो दी जा रही है, जब उनका कानपुर से दूर-दूर तक लेना देना नहीं है।
यह है मामला
कानपुर स्टेशन के बाहर सिटी साइड के एक पार्क में रेलवे ने कर्ण, तात्या टोपे, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, गणेश शंकर विद्यार्थी, मौलाना हसरत मोहानी और चंद्रशेखर आजाद जैसे विभूतियों की मूर्तियां लगाने का फैसला किया है। इसके पीछे तर्क दिया गया कि दानवीर कर्ण ने कानपुर को बसाया था। बाकी सभी कानपुर की महान विभूतियां हैं। हालांकि, कर्ण से कानपुर को जोडऩे पर सवाल खड़े हुए तो रेलवे ने फैसले में थोड़ा बदलाव किया और पार्क के बाहर कुछ लिखे-बिना ही मूर्तियां लगाने का फैसला किया।
इतिहासकार असहमत
डीएवी कॉलेज के प्राचीन इतिहास विभाग के हेड प्रफेसर अविनाश मिश्रा के अनुसार, कानपुर से कर्ण के रिश्ते पर आज तक कोई ऐतिहासिक या पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिला है। किंवदंतियों और लोकोक्तियों में भी कर्ण का जिक्र नहीं आया है। बौद्धकाल के ग्रंथों में बताया गया है कि भारत 16 महाजनपदों में बंटा था। कानपुर दक्षिणी पांचाल का हिस्सा था। उत्तरी पांचाल का मुख्य नगर कांपिल्य (वर्तमान कंपिल, फर्रुखाबाद) था, जबकि उत्तरी पांचाल की सीमा रेखा गंगा थी और मुख्यालय अहिक्षेत्र (वर्तमान आंवला, बरेली) था। कंपिल से कानपुर की दूरी ज्यादा नहीं होने के कारण कानपुर को दक्षिणी पांचाल का हिस्सा माना जाता है। यह व्यवस्था महाभारत काल तक रही। पांचाल नरेश ध्रुपद की बेटी द्रौपदी थीं। इसी तरह यजुर्वेद में कंपिलवासिनी का वर्णन मिलता है। ऐसे में कानपुर की ऐतिहासिकता वैदिक काल से पहले की है। हालांकि कानपुर के प्राचीन इतिहास पर जबर्दस्त काम करने की जरूरत है।
कर्ण का कोई मंदिर नहीं मिला
असोसिएट प्रफेसर संचिता घोष शर्मा के मुताबिक, कानपुर में दानवीर कर्ण का कोई मंदिर अब तक नहीं मिला है। कर्ण ने द्रोणाचार्य से जहां शिक्षा ली, उस जगह को अब गुरुग्राम कहा जाता है। बाद में उन्हें अंगदेश (भागलपुर) का राजा बनाया गया। ऐसे में कोई भी साहित्यिक या पुरातात्विक सुबूत कर्ण से कानपुर को नहीं जोड़ता। जाजमऊ में हुए उत्खनन में ईसा पूर्व पांचवीं और छठी शताब्दी के सबूत मिले हैं। इनसे यह साबित किया जा सकता है कि कानपुर भारत के प्राचीनतम नगरों में एक है। असोसिएट प्रफेसर दीपा प्रधान कहती हैं कि खजुराहो और सांची के स्तूप की तरह ऐतिहासिकता प्रमाणित करनी होती है। वहीं, वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के मुताबिक, इतिहास प्रमाण मांगता है। भैरोघाट पर मिले 1419 के शिलालेख में कान्हपुर दर्ज है। इससे यह बात साफ है कि यह नगर कानपुर है, कर्णपुर नहीं। 1770 और 1798 में अंग्रेजों ने जिस तरह कानपुर की अंग्रेजी स्पेलिंग लिखी, उससे साफ है कि वे कर्णपुर नहीं कान्हपुर नाम से सहमत थे। अपने उच्चारण के चलते अंग्रेजों ने 24 बार कानपुर की स्पेलिंग बदली, लेकिन हर बार कान्हपुर की ध्वनित हुआ।
थीम पार्क में कानपुर नहीं भारत के नायकों की मूर्तियां लगाई जा रही हैं। इनमें स्वतंत्रता सेनानियों को भी शामिल किया जाएगा।
– गौरव कृष्ण, सीपीआरओ, एनसीआर