केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के साथ धोखा…

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संपादकीय

डॉ. आर.पी. भटनागर,

काफी जद्दोजहद के बाद सरकार ने जुलाई 2016 को सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों को आधी-अधूरी लागू किया था। दस वर्षों के लंबे अंतराल के बाद न के बराबर वेतन बढ़ोत्तरी देकर सरकार ने कर्मचारियों की आशाओं पर पानी फेर दिया। जो कुछ थोड़ा बहुत लाभ भत्तों विशेषकर एच.आर.ए. के जरिए मिलना था उस पर भी सरकार कुंडली मार कर बैठ गयी। हाई पावर कमेटी बैठा दी गई जिसका अध्यक्ष माननीय अशोक लवासा को बनाया गया। मजदूर संगठनों के साथ कई बैठकें की गईं। एनएफआईआर ने कामगारों का पक्ष मजबूती ओर दृढ़ता के साथ सभी साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत किया। सहमति भी बनी परंतु 28 जून को जब कैबिनेट ने रिपोर्ट पर मंजूरी दी तब सरकार का असली चेहरा सामने आया। सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार एच.आर.ए. 24′, 16′ और 8′ ही मंजूर किया गया। कुछ मामूली फेरबदल के साथ कुछ अन्य भत्तों पर मंजूरी दी गई।
सवाल यह उठता है कि यदि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार ही भत्तों को लागू करना था तो कमेटी बैठाने का ढोंग क्यों किया गया। जुलाई 2016 में ही इन्हें लागू क्यों नहीं किया गया। लागू करने की बारी आयी तो 1 जुलाई 2017 से प्रभावी किए जाने का तुगलकी फरमान जारी कर दिया गया। यह प्रत्येक कर्मचारी को मिलने वाली पूर्णतया जायज बड़ी धनराशि पर सरकार द्वारा डाका डालना नहीं तो और क्या है। न्यूनतम एच.आर.ए. रु. 5400/-, रु. 3600/- और रु. 1800/- भी एक छलावा है। 25′ डी.ए. बढऩे पर 27′, 18′ एवं 9′ तथा 50′ डी.ए. होने पर 30′, 20′ एवं 10′ एच.आर.ए. का प्रावधान होने पर संबंधित कर्मचारियों को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। यह छलावा नहीं तो और क्या है। सांसदों के भत्ते एवं पगार संसद में मात्र हाथ उठाने से मन माफिक ढंग से बढ़ा दिए जाते हैं परंतु जब सरकारी कर्मचारियों की बात आती है तो सरकार को सांप सूंघ जाता है। यह सरासर अन्याय है।
एनएफआईआर व उससे संलग्न सभी संगठनों ने सरकार की इस दोगली नीति का कड़ा विरोध किया है। सभी कर्मचारियों में भारी रोष है। न्यूनतम वेतन बढ़ाने, न्यू पेंशन स्कीम रद्द करने, मल्टीप्लाइंट फैक्टर बढ़ाने जैसी अन्य मांगों पर सरकार अभी भी चुप्पी साधे हुए है। सरकार को चाहिए कि अगले दस वर्षों को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों को वेतन आयोग द्वारा मिलने वाले लाभों की विवेचना करें एवं न्यायसंगत हल निकाले अन्यथा कर्मचारियों में पनप रहा रोष भीषण आंदोलन का रूप ले सकता है।

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