बुलेट ट्रेन के लिए जमीन अधिग्रहण जल्द

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नई दिल्ली, मुंबई-अहमदाबाद के बीच चलाई जाने वाली देश की पहली बुलेट ट्रेन के लिए रेलवे ने जमीन अधिग्रहण की तैयारियां शुरू कर दी हैं। हालांकि रेलवे ने इसके साथ ही यह भी तैयारी की है कि भूमि अधिग्रहण के कार्य में किसी तरह की अड़चन न आए, इसलिए इस काम के लिए खासतौर पर कंसल्टेंट नियुक्त किया जा रहा है, जो यह भी देखेगा कि जिन लोगों की जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा, उन्हें पूरा मुआवजा तो मिले ही, साथ ही उनके रोजगार का भी इंतजाम किया जा सके। इसके लिए बाकायदा कार्ड बनाने का भी प्रावधान होगा।  बुलेट ट्रेन के निर्माण के लिए बनाई गई कंपनी के सूत्रों का कहना है कि अब तक जो आकलन किया गया है, उसके मुताबिक इस कॉरिडोर के लिए लगभग 800 से 850 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण की जरूरत पड़ेगी। दरअसल, पहले इस कॉरिडोर का कुछ हिस्सा जमीन पर ही बनाने का प्रावधान था, लेकिन बाद में तय किया गया कि बुलेट ट्रेन या तो एलिवेटेड ट्रैक पर चलेगी या फिर अंडरग्राउंड ट्रैक पर। इस वजह से अधिगृहीत की जाने वाली जमीन की मात्रा में कुछ कमी आई है। हालांकि इससे निर्माण लागत में कुछ बढ़ोतरी होगी।
अधिकारियों की चिंता यह है कि जमीन अधिग्रहण में किसी तरह की दिक्कत न आए, इसलिए बाकायदा इस मामले में कंसल्टेंट की भूमिका रखी गई है। यह कंसल्टेंट अधिगृहीत की जाने वाली पूरी जमीन की रिपोर्ट कार्ड तैयार करके बताएगा कि वहां कौन लोग रहते हैं या किस तरह की दुकानें या उद्योग हैं। नए कानून के मुताबिक, रेलवे यह भी व्यवस्था करेगा कि अगर जमीन पर कोई उद्योग या दुकान है तो उसके मालिक ही नहीं, बल्कि उसमें काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी रोजगार की व्यवस्था की जाए। इसके लिए पूरी रणनीति तैयार की जा रही है। यह सब इसलिए हो रहा है ताकि जमीन के अधिग्रहण में कोई बड़ी बाधा न आए।
भारतीय कंपनियों को जिम्मेदारी : अफसरों का कहना है कि बुलेट ट्रेन के लिए जो एलिवेटेड ट्रैक बनाया जाएगा, उसमें से ज्यादा काम भारतीय कंपनियों को दिया जाएगा। अफसरों का आकलन है कि 52 किलोमीटर का ट्रैक बनाने की जिम्मेदारी जापानी कंपनियों को और बाकी 450 किमी हिस्सा बनाने का काम देसी कंपनियों को मिलेगा। अधिकारियों के मुताबिक, चूंकि समुद्र के नीचे 7 किलोमीटर का हिस्सा बनाया जाना है, इसलिए इसके निर्माण में किसी विदेशी कंपनी को भागीदार बनाया जाएगा। इसकी वजह यह है कि इस तरह से पहले कभी भी भारत में समुद्र के नीचे सुरंग बनाने का कार्य नहीं किया गया। इसी तरह से बुलेट ट्रेन के अप और डाउन ट्रैक के लिए मेट्रो में तो अलग-अलग टनल होती हैं, लेकिन बुलेट ट्रेन के लिए एक ही टनल होगी, लेकिन इसका आकार (डाया) दोगुना होगा जिससे कि ट्रेनें एकसाथ आ-जा सकें।

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