संपादकीय
डॉ. आर.पी. भटनागर,
हमारा देश तीन सौ सालों तक गुलाम रहा। महमूद गजनबी से लेकर अंग्रेजों ने इस देश को मनमाने ढंग से लूटा। अनेक अमर शहीदों ने अपनी जान तक की बाजी लगाकर देश को परतंत्रता की बेडिय़ों से मुक्त कराया। सन 1947 में देश आजाद हुआ और सरकार बनी। उस समय देश में सुई तक नहीं बनती थी, देश राजा-रजवाड़ों के झगड़े में बंटा हुआ था। मात्र पचास गांवों में बिजली थी, गांव में नल तक नहीं थे, पूरे देश में मात्र दस बांध थे, सीमाओं पर मात्र कुछ सैनिक थे, चार विमान थे, बीस टैंक थे, खजाना खाली था। इन साठ सालों में हिंदुस्तान विश्व की एक बड़ी सैन्य शक्ति बनकर उभरा। हजारों विमान-हजारों टैंक-लाखों कारखाने-हजारों गांव में बिजली, सैकड़ों बांध, हजारों मीटर सडक़ों का निर्माण, यहां तक कि परमाणु बम तक बना दिया। हर हाथ में फोन, भाभा न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर, भाखड़ा और रिहंद जैसे बांध, तारापुर परमाणु बिजली घर, दर्जनों एम्स, आईआईटी, आईआईएमएस और सैकड़ों विश्वविद्यालय, इसरो जैसे अनगिनत गौरवशाली उपक्रम स्थापित किए गए। अनाज के मामले में भारत आत्मनिर्भर हो गया। संपूर्ण विश्व में भारत का लोहा माना जाने लगा। सिक्किम को देश में जोड़ दिया। भारत की ओर आंख दिखाने वाले पाकिस्तान को चीर कर दो टुकड़े कर दिए गए। भारत में कंप्यूटर युग की नींव रखी गई। आईटी के क्षेत्र में भारत अग्रणी बना। जब मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तब तक भारत सर्वाधिक विदेशी मुद्रा कोष वाले प्रथम दस राष्ट्रों में शामिल हो चुका था। केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों को जितने भी लाभ मिल रहे हैं वह पूर्व सरकारों की ही देन है। छठवें केंद्रीय वेतन आयोग में मिले लाभों से सभी वाकिफ हैं। सातवें केंद्रीय वेतन आयोग का गठन फरवरी 2014 में हुआ। बाद में नई सरकार ने 2014 में देश की बागडोर संभाली। सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों में दखल अंदाजी कर वर्तमान सरकार ने किस तरह केंद्रीय कर्मचारियों के साथ धोखा किया है वह सर्वविदित है। देश उन्नति करे यह हर देशवासी की अभिलाषा रहती है। परंतु ऐसा कहना कि पिछले साठ वर्षों में देश ने कोई प्रगति ही नहीं की सरासर गलत है। यह भी कहना सही नहीं है कि देश प्रगति नहीं कर रहा है। देश उत्तरोत्तर प्रगति की दिशा की ओर अग्रसर है। विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है। परंतु इस प्रगति रूपी रथ को हांकने वालों तक इसका लाभ पहुंचना चाहिए तभी सही मायने में प्रगति कहलाएगी। चंद रईस घरानों और विदेशी कंपनियों के हितों को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाने से देश का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाएगा। केंद्रीय कर्मचारियों को पिछले साठ वर्षों में जो लाभ प्रदत्त हुए हैं उन पर डाका डालने से उनकी मानसिक शांति भंग होना स्वाभाविक है। सरकार को चाहिए कि वह अपनी हठधर्मिता को छोडक़र सही मायने में सबका साथ – सबका विकास करे। मात्र ढिंढोरा पीटने और साठ साल का उलाहना देकर अपनी पीठ थपथपाने से कुछ होने वाला नहीं है। सच्चाई को अधिक समय तक छुपाया नहीं जा सकता।