इंजीनियरिंग के अजूबे

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पंबन ब्रिज – बेजोड़ नजारा

उत्तर भारत के तमिलनाडु में स्थित रामेश्वरम चारो धामों का एक ऐसा तीर्थ है जहां उत्तर भारत के श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। रामेश्वरम जाने के लिए मदुरै से रेल मार्ग व बस मार्ग द्वारा जाया जा सकता है। 170 किलोमीटर का यह सफर एक्सप्रेस या पैसेंजर ट्रेन से तीन से चार घंटे के बीच खत्म हो जाता है। मगर यह सफर आपकी यादों में सारी उम्र बसा रहता है। चूंकि इस बीच आप पंबन ब्रिज से होकर गुजरते हैं। भारतीय रेल इंजीनियरों की यह एक अदï्भुत कला का नमूना है। वास्तव में रामेश्वर भारत के नक्शे में भारत से बाहर एक टापू पर बसा शहर है। रामेश्वर को भारत से जोड़ता है समुद्र पर बना पंबन ब्रिज। पंबन ब्रिज देश का पहला सी ब्रिज है। अब मुंबई में भी सी लिंक करने वाला पुल बन गया है। लेकिन पंबन ब्रिज 1885 में बनना आरंभ हुआ था। गुजरात कारीगरों ने इसे 1912 में पूरा किया। 1913 से इस पर रेलगाड़ी चल रही है। पहले मीटर गेज थी अब ब्राड गेज। सौ साल पुराना ये पुल 2.3 किलोमीटर लंबा है। पुल में कोई बाउंड्री नहीं है। रेल की पटरी मानो समंदर के पानी से बस थोड़ा उपर चलती है। पुल पर चलते हुए हर ट्रेन की गति धीमी कर दी जाती है। रामनाथपुरम रेलवे स्टेशन के बाद आता है पंबन ब्रिज। जब पुल से ट्रेन गुजरती है तब खिडक़ी से समंदर को देखने अनुभव कभी नहीं भूलने वाला है।
पंबन ब्रिज की खास बात है कि ये कैंट लीवर ब्रिज है। समंदर में बड़े नेवी के जहाज के आने पर इस पुल को खोला जा सकता है। पुल के दोनों तरफ छह लोग खड़े होकर मेकेनिकल तरीके से पुल को खोल देते हैं। 1987 में राजीव गांधी के शासन काल में  पंबन ब्रिज के समांतर सडक़ पुल भी बन गया है। ये सडक़ पुल इतना ऊंचा है कि जहाज इसके नीचे से गुजर सकते हैं। सैकड़ों लोग रोज सडक़ पुल पर पहुंच कर रेल पुल का नजारा करने आते हैं।
हावडा ब्रिज – कोलकाता की शान
रवीन्द्र सेतु के नाम से जान पहचाने जाने वाला यह ब्रिज पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के उपर बना एक कैन्टीलीवर सेतु है। यह हावड़ा को कोलकाता से जोड़ता है। इसका मूल नाम नया हावड़ा पुल था जिसे बदलकर 14 जून सन् 1965 को रवीन्द्र सेतु कर दिया गया। किन्तु अब भी यह हावड़ा ब्रिज के नाम से अधिक लोकप्रिय है। यह अपने तरह का छठवाँ सबसे बड़ा पुल है। इस पुल का नाम बंगाली लेखक, कवि, समाज-सुधारक गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के नाम पर रखा गया है। इस सेतु के दोनों ओर ही नदी पर दो अन्य बड़े ब्रिज विद्यासागर ब्रिज और विवेकानंद ब्रिज हैं। हुगली नदी पर बना यह एक संतुलित कैंटिलीवर सस्पेंशन का सबसे लंबा 457.5 मीटर का ब्रिज है। जिसकी क्षमता 1,50,000 वाहन, 40,00,000 यात्रियों प्रतिदिन है। इस ब्रिज का निर्माण 1937 से 1943 के बीच रेलडल पामर और ट्रिटॉन तथा क्लीवलैंड ब्रिज एंड इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड द्वारा किया गया था। जिसका उदघाटन 1943 में हुआ।
विद्यासागर सेतु : विद्यासागर सेतु (प्रचलित नाम : दूसरा हावड़ा ब्रिज) हुगली नदी पर कोलकाता से हावड़ा को जोड़ता हुआ सेतु है। यह सेतु टोल ब्रिज है, किंतु साइकिलों के लिए नि:शुल्क है। यह अपने प्रकार के सेतुओं में भारत में सबसे लंबा और एशिया के सबसे लंबे सेतुओं में से एक है। इस सेतु का नाम उन्नीसवीं शताब्दी के बंगाली समाज-सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर के नाम पर रखा गया है। इस सेतु के दोनों ओर ही नदी पर दो अन्य बड़े सेतु भी हैं।
विवेकानंद सेतु : (पुराना नाम : विनिंग्डन ब्रिज, अन्य लोकप्रिय नाम : बाली पुल व बाली ब्रिज) पश्चिम बंगाल राज्य में हुगली नदी पर बनाया गया एक पुल है। यह पश्चिम बंगाल की राजधानी, महानगर कोलकाता को हुगली के दूसरे तट पर स्थित हावड़ा नगर से जोड़ती है। इस सेतु का निर्माण सन् 1932 में, कोलकाता बंदरगाह को उसके पृष्ठ क्षेत्रों(बंदरगाह से सटे वह आंतराक इलाके जिनके आयात-निर्यात की आवश्यकता कोलकाता बंदरगाह पूरा करता है) को रेलमार्ग व सडक़ मार्ग से जोडऩे के लिये, हुआ था। यह पुल 2887 फीट लम्बा इस्पात और ईंट से बना एक स्तम्भ-युक्त पुल(निर्माण शास्त्र में एक स्तम्भ-युक्त पुल) है। यह हावड़ा के बाली उपनगर को कोलकाता में दक्षिणेष्वर क्षेत्र से जोड़ता है। सन् 1932 में बाली ब्रिज का नाम विलिंग्डन ब्रिज, भारत के 22वें ब्रिटिष वाइसरॉय फऱीमन फऱीमन-थॉमस, विलिंग्डन के प्रथम् मार्की के ना म पर रखा गया था जिन्होंने इस्का उदघाटन किया था। आज़ादी के बाद, पश्चिम बंगाल सरकार ने एक विधैयक पारित कर विलिंग्डन ब्रिज का नाम महान सन्त व युवा चिन्ह स्वामी विवेकानंद के नाम पर रख दिया। आज इस पुल का औप्चारिक नाम विवेकानंद सेतू है। साथ ही स्थानिय तौर पर इसे बाली ब्रिज भी कहा जाता है, क्यों की यह कोलकाता को बाली से जोड़ता है।

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