जी पी एस के जरिए ट्रैक की जांच करने के रेलवे बोर्ड के फैसले से बहुत ज्यादा फायदा नहीं होगा। बेहतर तो यह है कि रेलमार्ग की मरम्मत नियमित रूप से की जाए। हर दिन 3 घंटे का रेल मार्ग की मरम्मत के लिए दिए जाएं तो गाडियों के ट्रैक से उतरने की घटनाएं नहीं के बराबर होंगी। एम. के. सोनी, पीडब्ल्यूआई
ट्रेन के पटरी से उतरने की घटनाओं को देखते हुए अब रेलवे ने ट्रैक की जांच करने वाली ट्रॉलियों को जीपीएस से लैस करने का फैसला किया है। यह फैसला इसलिए किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ट्रॉली के जरिए ट्रैक के हर हिस्से की जांच हो। अब तक कर्मचारी खुद ही ब्यौरा देते थे कि उन्होंने ट्रैक की जांच की है लेकिन अब जीपीएस से पता चल सकेगा कि वाकई जांच की गई या नहीं। इंडियन रेलवे के सूत्रों का कहना है कि इस बारे में औपचारिक आदेश जारी कर दिए गए हैं और सभी जोनल रेलवे से कहा गया है कि वे एक महीने के भीतर अपने जोन की ट्रैक जांच के लिए इस्तेमाल होने वाली ट्रॉलियों को जीपीएस से लैस करें। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा सिस्टम के तहत ट्रॉली के जरिए गैंगमैन पट्रोलिंग करते हैं और इस दौरान गैंगमैन सभी ट्रेक की जांच भी करते हुए चलते हैं। अब तक तो सिर्फ रेल कर्मचारी ही अपना ब्यौरा भरकर देते थे कि उन्होंने ट्रैक की जांच कर ली है लेकिन अब रेलवे ने उनकी ट्रॉली में ही जीपीएस लगाने का फैसला किया है। जीपीएस के जरिए रेलवे यह पता लगा सकेगी कि ट्रैक पर ट्राली लेकर यह जांच की गई या नहीं। जीपीएस के जरिए यह भी पता रहेगा कि कौन सी ट्रॉली किस वक्त कहां पर थी। ऐसे में बैठे बिठाए ही पट्रोलिंग करने की कागजी कार्रवाई को रोका जा सकेगा। रेलवे बोर्ड के डायरेक्टर पंकज त्यागी ने इस बारे में आदेश जारी करते हुए सभी जोनल रेलवे से कहा है कि वे एक महीने के भीतर अपने जोन की सभी ट्रॉली में जीपीएस लैस करें।