प्रभु जी ऊर्जा मंत्रालय की तरह रेलवे में भी कुछ कीजिए

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हमारे रेलमंत्री आज 64 साल के हो गए हैं. पीएम नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जिन लोगों को सबसे ज्यादा सम्मानपूर्वक जगह मिली है उनमें सुरेश प्रभु भी हैं. कहा जा सकता है बीजेपी उन्हें शिवसेना से छीनकर अपने पास ले आई. रेलमंत्री को उनके जन्मदिन की बधाई.
लेकिन उनके जन्मदिन पर ही बीते ढाई साल, जो आने वाले नवंबर में तीन सालों में तब्दील हो जाएंगे, का लेखाजोखा होना चाहिए कि इस कार्यकाल के लिए भी हम उन्हें उतनी ही शिद्दत से बधाई दे सकते हैं जितनी जन्मदिन के लिए दे रहे हैं?
बीती 3 जुलाई को पीएम मोदी आईसीएआई में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को नसीहत दे रहे थे. उन्होंने कई तरह से ये बताने की कोशिश की कि आपकी वजह से सिस्टम में कई गड़बडिय़ां हैं और मुझे आप पर इन्हें ठीक कर देने का पूरा भरोसा भी है.
रेल मंत्रालय के सीए हैं प्रभु?
पूरे भाषण में पीएम ने चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को हल्की डांट भी लगाई और भरोसा भी दिखाया. इन सभी सीए पर तो पीएम ने खूब बातें की लेकिन एक और सीए हैं, सुरेश प्रभु, जो उनके मंत्रिमंडल में हैं और उनका काम भी सीए की तरह ही दिखता है. यानी कि पेन-पेपर तो सबकुछ ठीक नजर आता है लेकिन वास्तविक स्थिति अभी तक तो बिल्कुल अलग दिखती है. हां, उनकी बातों के हिसाब से भविष्य बेहद सुनहरा है.
भारतीय रेल की हालत भी सुरेश प्रभु ने बिल्कुल एक सीए के अंदाज में ही संभाली है. वो अपने साक्षात्कारों के दौरान बड़ी बातें कहते नजर आते हैं. अभी मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर उन्होंने कई चैनलों को इंटरव्यू दिए. इनमें वो दो बातें प्रमुखता से उठाते नजर आए. पहली, कि ढाई सालों के अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने लगभग 16 हजार किलोमीटर के ट्रैक की डबलिंग या ट्रिपलिंग सैंक्शन किए. दूसरा, करीब 40 हजार रेलवे के डिब्बों का मॉडर्नाइजेशन किया जाएगा. फिर वो इन दोनों के पूरा होने के लिए लगभग पांच साल का समय भी बता देते हैं.
बड़ी-बड़ी बातें और
कोई बदलाव नहीं
अपने शुरुआती दो रेल बजट के दौरान सुरेश प्रभु ने खूब जोर दिया कि नई ट्रेनें चलाने की जगह वो रेलवे की व्यवस्था सुधारने पर ज्यादा ध्यान देंगे. लेकिन मूल रूप से सुधारों की बात की जाए तो लोगों के हाथ ले-देके रेलवे की नई वेबसाइट के अलावा क्या आया? लाख दावों के बावजूद रेलवे में गंदगी का स्तर वही बना हुआ है. ट्रेनें उतनी ही देरी से चल रही हैं. बड़े ट्रेन एक्सीडेंट भी हुए. और इन सबके ऊपर रेलवे का किराया फ्लेक्सी फेयर के नाम पर प्लेन के आस-पास कर दिया गया.
सुरेश प्रभु को एक बात जरूर बतानी चाहिए कि क्या ट्रैक की डबलिंग या ट्रिपलिंग सैंक्शन और डिब्बों के नवीनीकरण की बात कोई रेल मंत्री अपने कार्यकाल के तीसरे वर्ष में कर सकता है? वो भी अगले पांच साल का समय मांगते हुए? मतलब वो ये मानकर चल रहे हैं कि 2019 में कुछ भी हो जाए लेकिन उनकी सरकार बनी रहेगी? और रेल मंत्री भी वही बने रहेंगे?
भारतीय रेलवे मॉर्डन नहीं
बीते महीने नीति आयोग के अध्ययन में ये बात सामने आई कि ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाओं में 60 प्रतिशत से ज्यादा केस स्टाफ फेलियर की वजह से होते हैं. एक इंटरव्यू के दौरान तकनीक को बढ़ावा देने की बात करते सुरेश प्रभु से जब एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि अभी रेलवे के तकनीकीकरण के मामले में आप शुरुआती पायदान पर हैं तो खुद सुरेश प्रभु ने इस बात को स्वीकार किया. यानी एक तरफ तो ट्रेनें मानवीय गलतियों की वजह से एक्सीडेंट का शिकार हो रही हैं तो दूसरी तरफ तकनीक के मॉडर्नाइजेशन में अभी हम पहले पायदान पर खड़े हैं.
एक और बात जिसके लिए सुरेश प्रभु अपनी पीठ थपथपाते हैं वो है टिकट के किरायों में 10 प्रतिशत का डिस्काउंट. इसमें भी एक पेच रखा गया. वो ये कि आपको टिकट पर जो दस प्रतिशत का डिस्काउंट मिलेगा वो आखिरी टिकट के दाम के आधार पर मिलेगा.
अब सामान्य तौर पर ट्रेनों में टिकट का एक ही निर्धारित किराया होता है. अंतर बस तब आता है जब आप तत्काल टिकट ले रहे होते हैं. यानी सामान्य टिकट और तत्काल टिकट के दाम का अंतर. सिर्फ फ्लेक्सी फेयर में टिकट के दाम सीटों की उपलब्धता के आधार पर बढ़ते जाते हैं. तो इस हिसाब से फ्लेक्सी फेयर के आधार पर जो अंतिम टिकट बिका होगा उस पर 10 प्रतिशत का डिस्काउंट. तो रेल मंत्री एक बात बताएं जब सामान्य किराए से दो-तीन गुना ज्यादा दाम वसूल ही लिया जा रहा है तो 10 प्रतिशत का डिस्काउंट किस बात का?
2001 में पठानकोट के रंजीत सागर डैम का उद्घाटन करते सुरेश प्रभु. साथ में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी और पंजाब के ऊर्जामंत्री सिकंदर सिंह मलूका.
2001 में पठानकोट के रंजीत सागर डैम का उद्घाटन करते सुरेश प्रभु. साथ में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी और पंजाब के ऊर्जामंत्री सिकंदर सिंह मलूका.
यात्रियों से ही वसूलेंगे सारा बकाया?
फ्लेक्सी फेयर को लेकर जब एक वेबसाइट के फेसबुक लाइव कार्यक्रम में एक यूजर ने सुरेश प्रभु से पूछा कि सर राजधानी जैसी ट्रेन, जिसमें पहले से भी दूसरी ट्रेनों के मुकाबले ज्यादा किराया होता है, में फ्लेक्सी फेयर कितना जायज है? रेलमंत्री ने उस यूजर को टका सा जवाब दिया कि यात्री भाड़े की तरफ से कमी होने की वजह से रेलवे पर 35 से 40 हजार करोड़ रुपए बकाया हैं. आप कैसे कह सकते हैं कि हम किराया ज्यादा ले रहे हैं?
यानी रेलवे की जो दुर्गति पिछले कई दशकों में हुई है उसे यात्रियों से जबरिया अधिक किराया वसूल कर पूरा किया जाएगा? जबकि सुरेश प्रभु फ्रेट में कई तरह की छूट देकर रेलवे का मुनाफा बढ़ाने के लिए अपनी पीठ थपथपाते हैं. मतलब जो रेलवे भारत की लाइफ लाइन कही जाती है उसमें व्यापार और धंधा करने की छूट तो मिलेगी लेकिन यात्रियों से अधिक किराया वसूले जाने का कोई दुख नहीं? ये कैसा सिस्टम है.
सुरेश प्रभु की तारीफ अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ऊर्जा मंत्रालय में किए गए सुधारों को लेकर की जाती है. शायद इन्हीं कामों की वजह से उन्हें रेल जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपा गया था. लेकिन ढाई साल बीतने के बाद रेल मंत्री और समय मांग रहे हैं. हम ये उम्मीद करते हैं कि भले ही अभी उनके द्वारा किए गए सुधार दिखाई नहीं दे रहे हों लेकिन भविष्य में ऐसा जरूर होगा.

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