हमें रेलवे क्वार्टर/मकान दे दो
राजकुमार कुशवाहा (खलासी, माटुंगा वर्कशॉप)
दस वर्षों के बाद वेतन आयोग आया वो भी आधा-अधूरा। पता ही नहीं चला। जो स्थिति पहले थी वही आज भी है। बड़े-बड़े सपने संजोए थे। सब धराशायी हो गए। एक एचआरए से उम्मीद थी उस पर भी सरकार कुंडली मार कर बैठ गई। मैं भुसावल का रहने वाला हूं। घर-बार छोडक़र मुंबई जैसे महानगर में नौकरी करने आया। रेलवे में नौकरी करने की चाह थी। 10वीं में 80 प्रतिशत से अधिक नंबर लाया, आई.टी.आई. में भी 80 प्रतिशत से अधिक। ट्रेड अपे्रंटिस में सिलेक्शन हुआ। तीन वर्ष की ट्रेनिंग की। सोचा था इतना सब करने के बाद टेक्नीशियन बनूंगा। परंतु खलासी के पद पर नियुक्त हुआ। स्किल्ड इंडिया का नारा, सिर्फ नारा ही रह गया। खैर अपने आप को तसल्ली दी, सरकारी नौकरी तो मिली। पिताजी भी रेलवे से ही सेवानिवृत हुए थे। उनकी भी यही इच्छा थी। अब मुंबई जैसे शहर में कहां रहूं? यह बहुत बड़ा प्रश्न सामने था सरकार और उसके द्वारा गठित वेतन आयोग के कर्णधारों को पता नहीं क्या सूझा कि एचआरए का प्रतिशत ही कम करने की सिफारिश कर दी। हकीकत में मकान किराया आसमान छू रहा है। ऊपर से डिपोजिट। 11 माह का करार समाप्त होने पर फिर नया मकान ढूढ़ों। फिर बैचलर हो तो किराए का मकान मिलना और भी मुश्किल। तंग आ गया हूं इन सब दुष्वारियों से। मैंने सोचा था कि कुंवारा योगी रहूंगा तो शायद कहीं मुख्यमंत्री बनने का चांस मिल जाए। परंतु किराए पर मकान चाहिए तो शादी करनी ही पड़ेगी। सरकार भत्तों को लागू करने में पता नहीं क्या बीरबल की खिचड़ी पका रही है? मेरी समझ से परे है। मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह सुझाव हैं कि हमें एचआरए मत दो उसकी जगह हमें कार्यस्थल के नजदीक ही एक अच्छा सा रेलवे क्वार्टर दे दो या फिर मकान हम ढूढ़ते हैं किराया आप भर दो।
भारत सरकार, रेलवे प्रशासन सभी से मेरी यही गुहार है।