बचपन से ही मुझे रेलगाड़ी देखकर बहुत अच्छा लगता था। पिताजी भी रेलवे में कार्यरत थे। तो एक अलग ही तरह का लगाव था। सरकारी नौकरी वह भी रेलवे की। पिताजी कम पगार में भी स्वाभिमान के साथ कहते थे – रिटायरमेंट के बाद मुझे पेंशन मिलेगी, मर जाउंगा तो चिंता नहीं है मां को जीवन-यापन के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा। वह भी फैमली पेंशन की हकदार होगी। एक विश्वास था, चिंता रहित रहते थे। इसी माहौल में मैं बड़ा हुआ। इच्छा बलवती हुई, जुनून जागा कि मैं भी रेलवे में नौकरी करूंगा। दसवीं की, बारवीं की फिर रेलवे में जैसे ही जगह निकली फार्म भर दिया बहुत मेहनत से तैयारी की। ईश्वर की कृपा से रेलवे में नौकरी मिली। पूरा परिवार खुश था। परंतु पहले ही दिन न्यू पेंशन स्कीम के बारे में जब पता चला तो सारे सपने, वो पिताजी का स्वाभिमान आदि सब धराशायी हो गए। मैं अपने आपको छला सा महसूस करता हूं और सोचता हूं कि सरकार ने बुढ़ापे की लाठी छीनकर कर्मचारियों के साथ घोर अन्याय किया है। डिफेंस कर्मचारियों को पेंशन, एमएलए, एमपी को को पेंशन तो फिर हम रेल कर्मियों को क्यों नहीं?
हम भी अपनी जान पर खेलकर, सर्दी-गर्मी और बरसात की परवाह न किए वगैर बॉर्डर पर तैनात एक सैनिक की भांति अपनी ड्यूटी निभाते है करोड़ों रेलयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। फिर हमारे साथ ये दोगला बर्ताव क्यों? न्यू पेंशन स्कीम वास्तव में नो पेंशन स्कीम है इसे रद्द होना ही चाहिए एवं पुरानी वैधानिक पेंशन स्कीम हम सभी पर समान रूप से लागू होनी चाहिए।
दीपू कुमार (खलासी, माटुंगा वर्कशॉप)