दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निपटारा आयोग (एससीडीआरसी) ने 2 दिसम्बर को उत्तर रेलवे से कहा कि वह एक यात्री को उसके चुराए गए सामान के लिए क्षतिपूर्ति करे और कहा कि रेलवे की यह जिम्मेदारी है कि यात्री अपने गंतव्य तक सामान के साथ सुरक्षित पहुंचे।
आयोग ने रेलवे की दलीलों को खारिज कर दिया। रेलवे ने अधिनियम की धारा 100 को लागू करने का यह कहते हुए विरोध किया था कि रेल प्रशासन को किसी सामान के नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए जब तक कि रेल सेवक ने सामान बुक नहीं किया हो और रसीद नहीं दिया हो।
आयोग की अध्यक्ष वीणा बीरबल ने रेलवे से कहा कि वह पश्चिम दिल्ली निवासी सचिन मित्तल को मुआवजे के तौर पर 25000 रुपये और पांच हजार रुपये मुकदमे के खर्च के तौर पर भुगतान करे। मित्तल ने वर्ष 2000 में लखनऊ से दिल्ली की यात्रा करने के दौरान अपना सामान खो दिया था।
एक जिला मंच के आदेश के खिलाफ मित्तल द्वारा दायर अपील को मंजूर करते हुए आयोग ने कहा कि अगर यात्री के जीवन और सामान का खयाल नहीं रखा जाता है तो प्रत्येक डिब्बे में रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के सदस्यों की तैनाती क्यों की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच ने मित्तल की शिकायत खारिज कर दी थी।
आयोग ने कहा, ‘‘हम जिला मंच की इस टिप्पणी से भी असहमत हैं कि जीआरपी, आरपीएफ के लोगों से प्रत्येक यात्री के सामान की रक्षा करने की उम्मीद नहीं की जाती है, जब अनधिकृत लोग शिकायतकर्ता की सीट के निकट मौजूद थे। हम इस बात को समझने में विफल रहे कि क्यों जीआरपी, आरपीएफ की डिब्बे में तैनाती की जाती है, अगर वे यात्रियों के जीवन या सामान का खयाल नहीं रख सकते हैं।
आयोग ने कहा, एक बार रेलवे ने किसी उपभोक्ता को ट्रेन से यात्रा के लिए टिकट जारी कर दिया है और उपभोक्ता को सामान ले जाने की अनुमति दे दी है, तो उसे यात्रियों और उसके सामानों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है ओर कोई भी कमी या अपर्याप्तता या त्रुटि सेवा में कमी के समान है और इसलिए यह रेलवे को नुकसान या क्षति समेत शिकायतकर्ता को हुई मानसिक क्षति की भरपाई के लिए मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार बनाता है।