ग्वालियर से सबलगढ़ के बीच चलने वाली नैरोगेज ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करने वाले यात्रियों की वजह से रेलवे को प्रतिमाह लाखों की चपत लग रही है।
सबलगढ़ से ग्वालियर, ग्वालियर से श्योपुर, श्योपुर से ग्वालियर व ग्वालियर से सबलगढ़ ट्रेन में प्रतिदिन सैकड़ों यात्री यात्रा करते हैं। लेकिन ट्रेन में टिकट लेकर यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या 20 से 25 फीसदी ही होती है। जान जोखिम में डालकर यात्रा करने वाले यात्रियों में वे लोग शामिल थे जिन्हें कम किराए में यात्रा करने का शौक है।ऐसे लोग बस की अपेक्षा छोटी लाइन ट्रेन में यात्रा करते हैं।चूंकि टिकट चेकिंग बहुत ही कम होती है, जिसके चलते यात्री टिकट खरीदने में पैसा खर्च करना उचित नहीं समझते।करीब 100 साल पहले ग्वालियर स्टेट के महाराज माधव राव सिंधिया प्रथम ने नैरोगेज रेल ट्रैक बिछवाया था। ग्वालियर से श्योपुर तक का ट्रैक तीन चरणों में पूरा हुआ। पहले 1904 में ग्वालियर से सबलगढ़ तक फिर यह वीरपुर तक पहुंचा और 1909 में श्योपुर तक रेल लाइन पहुंच गई।सौ साल पहले जहां बसें और दूसरे वाहन नहीं चलते थे, वहां ग्वालियर से श्योपुर के लिए ट्रेन चलती थी।लेकिन आज यह छोटी रेल ग्रामीण क्षेत्रों के लिए लाइफ लाइन कहलाती है।
श्योपुर से ग्वालियर व सबलगढ़ से ग्वालियर के बीच संचालित नैरोगेज पैसेंजर व डीआरसी ट्रेन में प्रतिदिन एक हजार से अधिक यात्री यात्रा करते हैं।लेकिन इनमें से अधिकतर यात्री ग्वालियर स्टेशन से न बैठते हुए मोतीझील रेलवे स्टेशन से बिना टिकट बैठ जाते हैं।इन यात्रियों को कभी भी कोई भय नहीं होता।
ब्रॉड गेज में बदलना फायदेमंद नहीं:- इस नैरोगेज को ब्रॉड गेज में बदलने की योजना रेलवे ने बनाई।नेताओं ने आंदोलन भी किए, लेकिन सूत्रों की मानें तो रेलवे ने इस ट्रैक को आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं माना।सूत्रों की मानें तो रेलवे छोटी लाइन को ब्राड गेज में बदलने के लिए कोई भी रूचि नहीं ले रहा है।