एक लाख रुपए की राशि और एक सर्टिफिकेट दिया गया

मुमताज 20 वर्ष की थीं, तब उन्होंने पहली बार ट्रेन चलाई थी। 45 वर्षीय मुमताज 1991 से भारतीय रेलवे में नौकरी कर रही हैं। वह कई तरह की रेलगाडिय़ां चला लेती हैं और फिलहाल छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस-ठाणे पर मध्य रेलवे की उपनगरीय लोकल ट्रेन चलाती हैं। यह रेलवे मार्ग किसी महिला ड्राइवर द्वारा चलाया जानेवाला देश का पहला और सबसे ज्यादा भीड़भाड़ वाला मार्ग है।

केंद्रीय रेलवे के अधिकारी ने बताया कि एक रूढि़वादी मुस्लिम परिवार से आनेवाली काजी करीब 25 साल से ट्रेन इंजन की चालक रही हैं और देश की लाखों महिलाएं उनसे प्रेरणा हासिल कर रही हैं। हालांकि यह सब उस लडक़ी के लिए बिल्कुल आसान नहीं था, जिसने 1989 में सांताक्रूज उपरनगर के सेठ आनंदीलाल पोद्दार हाईस्कूल से पढ़ाई की थी और रेलवे में नौकरी के लिए आवेदन किया था। उनका विरोध करने वाला पहला व्यक्ति उनके पिता अल्लारखू इस्माइल काथवाला थे, जो एक वरिष्ठ रेलवे कर्मचारी थे। पारंपरिक ख्यालों वाले मुमताज के पिता नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी एक ऐसी नौकरी करे जिसमें अबतक पुरुषों का वर्चस्व हो। इसके अलावा बतौर रेलवे ड्राइवर मुमताज को ऑड ऑवर्स में भी नौकरी करनी पड़ती, ये मुमताज के पिता को गंवारा नहीं था। लेकिन कुछ पारिवारिक मित्रों और रेल अधिकारियों ने उन्हें मुमताज को सपना पूरा करने देने के लिए मना लिया। 1995  में पहली महिला डीजल इंजन ड्राइवर होने पर उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्र्स में दर्ज किया गया था।

अब पूरा परिवार मुमताज पर गर्व करता है। वह सायन में रहती हैं। उन्होंने नंदुरबार के एक बिजली इंजीनियर मकसूद काजी से शादी की है, मुमताज के दो बेटे 14 वर्षीय तौसीफ और 11 फतेन को अपनी अम्मी की कामयाबी पर गर्व है। मुमताज बताती हैं कि आपको अपने सपने हर हाल में पूरे करने चाहिए, शुरुआत में कुछ विरोध हो भी तो उसका मुकाबला करना चाहिए। सफलता जरुर आपको कदम चुमेगी।

आज मुमताज के नाम कई खिताब हैं। 1995 में उनका नाम लिमका बुक ऑफ रेकॉड्र्स में दर्ज हुआ, 2015 में उन्हें रेलवेज जनरल मैनेजर अवॉर्ड से नवाजा गया और 2017 में उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार भी मिला।

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