निशाजनक रेल एवं केंद्रीय बजट

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रेल मंत्री सुरेश ने 25 फरवरी को संसद में रेल बजट पेश किया। रेल कर्मचारी आस लगाए बैठे थे कि उनके और उनके परिवारजनों के उत्थान के लिए बजट में कुछ न कुछ प्रावधान किया जाएगा। मुंबईकर आस लगाए बैठे थे कि लोकल रेल सेवा में सुधार होगा। परंतु इस रेल बजट से उन्हें घोर निराशा ही हुई। ऊपर से वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 29 फरवरी को पेश किए केंद्रीय बजट से उनकी रही सही उम्मीदों पर पानी फिर गया। इन्कम टैक्स में कोई अतिरिक्त रियायत नहीं दी गई ऊपर से पीएफ निकासी पर भी टैक्स थोप दिया गया। पूरी ईमानदारी से टैक्स अदा करने वाले वेतनभोगियों की परेशानियों से लगता है सरकार को कोई लेना-देना ही नहीं है। हाँ अकूत कालाधन इक_ा करने वालों को सरकार ने सौगात जरूरी दी है 145 प्रतिशत टैक्स अदा करके वे छूट सकते हैं। कृषि क्षेत्र के लिए किए गए प्रावधानों का हम ने मिडिल क्लास की जेब पर डाका डालने का काम किया है। सर्विस टैक्स में 0.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर देने से उनका घरेलू बजट निश्चय ही बिगड़ जाएगा। टेलीफोन बिल, इंश्योरेंस प्रीमियत, मोबाइल फोन, एयर टिकट तथा प्रॉपर्टी खरीदना आदि मंहगा हो जाएगा।  अप्रत्यक्ष टैक्स में बढ़ोत्तरी होने से मिडिल क्लास का जीना दूभर हो जाएगा।
कुल मिलाकर सरकार के दोनों बजट सिर्फ चुनाव में मोदी जी द्वारा दिखाए गए स्वप्न अब दिवास्वप्न साबित हो रहे हैं। आम जनता अपने आपको ठगा सा महसूस कर रही है। उसे काँग्रेस के शासनकाल की याद आने लगी है। 7वें केंद्रीय वेतन आयोग की कामगार विरोधी सिफारिशें और ऊपर से बजट में कुछ न मिलने से कामगारों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आने लगी हैं। हमारा मानना है कि कम से कम पीएफ निकासी पर टैक्स कदापि नहीं लगना चाहिए तथा बढ़ती हुई मंहगाई को देखते हुए इन्कम टैक्स में छूट की राशि बढ़ानी ही चाहिए।

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