भारतीय रेल का सफरनामा (रोचक जानकारी)

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(अंक 19 से का शेष…)
जनरल बोगी (सेकंड क्लास) का किराया सबसे कम होता है, जबकि स्लीपर में उससे ज्यादा तथा एसी का किराया सबसे अधिक लगता है। जनरल बोगी में साधारण-सी सुविधाएं होती हैं। स्लीपर में जनरल से थोड़ी अच्छी व सोने की सुविधा होती है, जबकि एसी कोच में वातानुकूलन समेत ए क्लास की सुविधाएं मिलती हैं।
काफी पूंजी की जरूरत : नई रेलवे लाइन डालने व अन्य सुविधाओं के लिए रेलवे को काफी पूंजी की जरूरत है, किंतु राजनीतिक कारणों से रेलवे का इतना मामूली किराया पिछले 8-10 वर्षों में बढ़ाया गया है कि वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है। अगर थोड़ी भी ज्यादा वृद्धि कर दी जाए तो रेलवे के पास काफी पूंजी आ सकती है और वह अपना कायाकल्प कर सकता है। किन्तु वोटों की राजनीति के चलते रेलवे को मोहरा बनाया जा रहा है, जो इसके लिए नुकसानदेह ही साबित होगा।
इतना सब होने के बावजूद आज भी रेलगाड़ी की सवारी हम सबको खूब लुभाती है। हर कोई इसमें यात्रा करना चाहता है व चाहेगा, आखिर क्यों नहीं आरामदेह जो है।
जिन्हें बस या अन्य साधनों से परेशानी होती है, वे इसी में बैठना पसंद करते हैं। तो फिर देर किस बात की, आप भी तैयार हो जाइए लेलगाली में बैठने के लिए।
मुंबई और अमृतसर के बीच चलने वाली गोल्डन टेंपल ट्रेन 1 सितंबर को अपने 84 साल पूरे कर चुकी है। वर्ष 1928 में शुरू हुई यह ट्रेन कभी देश की सबसे लंबी और तेज गति से चलने वाली ट्रेन हुआ करती थी।
उस समय यह पाकिस्तान के पेशावर को मुंबई से जोड़ती थी। अविभाजित हिंदुस्तान के फ्रंट से चलने वाली इस ट्रेन का नाम पहले फ्रंटियर मेल था। यह कोटा में इतनी मशहूर थी कि लोग इसकी आवाज सुनकर ही अपनी घड़ी का टाइम सेट करते थे।
बंटवारे के बाद से यह ट्रेन मुंबई से अमृतसर के बीच में चल रही है। नाम बदलने के बावजूद कोटा में आज भी लोग इसको फ्रंटियर मेल के नाम से बुलाते हैं। इस ट्रेन से कोटा की कई यादें जुड़ी हैं।
तब तीन टुकड़े कर दिए थे ट्रेन के : इस ट्रेन के मुख्य गाड़ी नियंत्रक रहे अब्दुल मुईद बताते हैं कि 2 मई 1974 को ऐतिहासिक रेल हड़ताल के दौरान डिब्बों के बीच के ज्वॉइंट खोलकर इस ट्रेन के कोटा में तीन टुकड़े कर दिए थे। उस समय स्टेशन पर लाठीचार्ज भी हुआ था। उस समय ड्राइवर मिस्टर विलियम इस ट्रेन को जैसे-तैसे छुड़ा कर ले गए थे।
एक पैसे में मिलते थे चमन के अंगूर : रेलवे में रहे वरिष्ठ बाबू रामस्वरूप सिंह ने बताया कि तब इस ट्रेन में पेशावर से चमन के अंगूर आते थे, जो कोटा में कभी-कभी ही देखने को मिलते थे। यह अंगूर इतने रसीले और मीठे होते थे कि दिख जाएं तो लोग मांगने में भी संकोच नहीं करते थे।
फर्स्ट क्लास में सलाम करते थे हैड टीटी : उस समय इस ट्रेन में फर्स्ट क्लास में सफर करने वाले का अलग ही सम्मान होता था। फर्स्ट क्लास का इतना रुतबा था कि ट्रेन के रुकने पर हैड टीटी आकर डिब्बे में सलाम मारकर सार-संभाल करते थे। भोजनालय में इतना स्वादिष्ट खाना बनता था कि शहर से लोग डबल रोटी लेने ट्रेन तक जाया करते थे।

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