38 वर्ष पुराने 7 नैरोगेज रेल इंजनों को रेलवे के बेड़े से हटाया

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पठानकोट(शारदा), नगर के नैरोगेज रेलवे स्टेशन पर खड़े 7 इंजन पिछले 38 वर्षों से पंजाब व हिमाचल प्रदेश के यात्रियों का भार ढोते-ढोते अपनी आयु सीमा पूरी करने के बाद रेलवे व यात्रियों को अलविदा कहते हुए अब इतिहास का हिस्सा बनने जा रहे हैं।पंजाब के पठानकोट व हिमाचल प्रदेश के जोगिन्दर नगर रेलखंड पर पिछले करीब 4 दशकों से रेलवे विभाग के 7 नैरोगेज रेल इंजनों नम्बर जैड.डी.एम.3, 160, 161, 164, 165, 166, 167 व 177 की वर्षों लम्बी यात्रा समाप्त हो गई। दशकों तक इन रेल इंजनों ने अपनी समर्था से अधिक रेलयात्रियों का बोझ ढोया ।

कांगड़ा घाटी की पर्वत शृंखला की ऊंची से ऊंची छोटी चोटियों पर ये इंजन शान से चढ़ते रहे परन्तु आज उनकी आयु पूरी होने से इन नैरोगेज रेल इंजनों की इन दोनों ही प्रदेशों के मैदानी व पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरने वाले नैरोगेज रेलखंड पर छुक-छुक यात्रियों को सुनाई नहीं देगी। रेलवे विभाग ने इन सातों रेलवे इंजनों को सेवानिवृत्ति दे दी है। लोको शैड में खड़े किए गए इन इंजनों के कलपुर्जों को रेलवे विभाग के विशेषज्ञों द्वारा अलग-अलग किया जा रहा है जिससे इन इंजनों की विदाई और भी दुखदायक है, वहीं जिन रेलवे कर्मचारियों के लिए ये पुराने इंजन कई वर्षों तक परिवार के हिस्से की भांति रहे, उनका अस्तित्व मिटते देख उनकी आंखों में भी नमी साफ नजर आ रही थी।

सातों इंजनों ने 25 लाख किलोमीटर से ऊपर की है यात्रा

पठानकोट के लोको शैड में कबाड़ हो चुके सातों इंजनों के स्क्रैप, जिन्हें मंडी गोबिन्दगढ़ के कबाडिय़ा कृष्णा इंजीनियर्स वक्र्स के कारीगरों द्वारा काट कर ले जाना है, उनके बारे में जानकारी देते हुए एस.एस.ई. डीजल रमण शर्मा ने बताया कि प्रत्येक इंजन ने पिछले 38 वर्षों में 25,000 किलोमीटर से ऊपर यात्रियों को ढोया है। इन इंजनों में भार खींचने की इतनी क्षमता थी कि 23 मीटर लम्बी व एक मीटर उंची चढ़ाई को 45 किलोमीटर की गति से पार कर जाते थे जो हिमाचल की वादियों में एक लोहे की मशीन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था।

मृत हाथी की तरह बिके सातों इंजन
कहावत है कि जिन्दा हाथी लाख का और मरा हुआ सवा लाख का। यह उक्ति इन सातों इंजनों की बिक्री पर सटीक सिद्ध हुई। रेलवे विभाग द्वारा जब इन्हें बेचने के लिए बोली दाताओं को आमंत्रण दिया गया तो कृष्णा इंजीनियर्स के बोलीदाताओं ने सर्वाधिक बोली लगाकर इन्हें 36 लाख रुपए में कबाड़ के रूप में खरीदा। एस.एस.ई. रमण शर्मा, एस.एस.ई. अमित गुप्ता व रमेश कुमार ने बताया कि इन सातों इंजनों को 1976 में 3 लाख 76 हजार रुपए में विभाग ने खरीदा था और अब इनकी बिक्री 5 लाख के करीब हुई है, जिससे ये विभाग व यात्रियों को सेवा देने के साथ-साथ मुनाफा भी देकर गए हैं। उन्होंने बताया कि इनकी याद हमेशा उनको आती रहेगी क्योंकि इतने शक्तिशाली इंजनों को खोना किसी दुख से कम नहीं है।

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