हमारे देश की जनता को हम मोटे तौर पर दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं एक वो जो ऊंची-ऊंची अट्टलिकाओं में रहते हैं और अकूल संपत्ति के मालिक हैं और दूसरी हमारी आम जनता जिसमें हमारी वर्किंग क्लास, जिसमें संगठित क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र के कामगार, किसान, खेतहर मजदूर, छोटे व्यवसायी आदि आते हैं। पूंजीपतियों के पास इतना है कि वे उसे पचा नहीं पाते और दूसरी ओर हमारी आम जनता है जो बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी की जुगाड़ करने में अपना खून-पसीना एक कर देती है। देश की आम जनता की जरूरतें बहुत सीमित हैं रोटी, कपड़ा और मकान। दो वक्त की रोटी, छप्पन भोग नहीं, तन ठकने को कपड़ा, फैसन के लिए नहीं और सिर ढकने को छोटा सा घर, कोई अंबानी जैसा महल नहीं। इसके अलावा वे चाहते हैं कि उनके बच्चों को भी उच्च शिक्षा मिले, वे भी डॉक्टर इंजीनियर बनें, अस्पतालों में बेहतर इलाज हो सके, बिजली, पानी और सडक़ जैसी मूलभूत सुविधाएं मिलें।

“हमारा कामगार यह चाहता है कि उसकी कार्यदशा में सुधार हो, उसे भी टूटे-फूटे फर्नीचर, पुराने औजारों और उपकरणों से निजात मिले, उसकी भी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित हो। 30 से 40 वर्षों की देश के प्रति समर्पित सेवा के बाद सेवानिवृत्त होने पर वह स्वाभिमान से अपना जीवनयापन कर सके। बीमार पडऩे पर सरकारी अस्पतालों में उसका भी बेहतर इलाज हो सके। सरकारी आवासों की दशा कम से कम रहने लायक तो हो। परंतु वस्तुस्थिति क्या है? एक आम आदमी के प्रति सरकार की उदासिनता निश्चित ही इस देश के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। अगर सरकार की नीतियां सिर्फ पूंजीपतियों के हितों को ध्यान में रखकर बनाई जाएंगी तो देश की प्रगति की बात करना बेईमानी होगी। निजीकरण को बढ़ावा देने और विदेशी कंपनियों को हमारे संसाधनों का दोहन करने के लिए आमंत्रित करने से हमारी आम जनता को शोषण ही होगा और कुछ नहीं।”
– ये विदेशी कंपनियां हमारे देश और उसकी आम जनता का भला कदापि नहीं करेंगी। 
– देश की सीमाओं की रक्षा करने वाला हमारा सैनिक और रेलवे में कार्यरत हमारे रेलकर्मियों की जान की यदि सरकार को   परवाह नहीं है तो वह सरकार किस काम की। 
– आतंकवादियों और अलगाववादी तत्वों को यदि इस देश में जेल से निकालकर खुला छोड़ा जाएगा तो हमारे सैनिकों का    मनाबल निश्चय ही टूट जाएगा।
तेज गति से दौडऩे वाली रेलगाडिय़ों के बीच रोजाना मौत से जूझने वाले हमारे ट्रैकमैन व अन्य रेलकर्मियों की सुरक्षा यदि सुनिश्चित नहीं होगी। उनकी जायज समस्याओं का निदान नहीं होगा तो इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं। रेलवे व अन्य सरकारी अस्पतालों की चरमराती व्यवस्था में यदि शीघ्र सुधार नहीं हुआ तो निश्चय ही हमारी आम जनता में उपज रहा रोष कभी भी ज्वालामुखी का रूप धारण कर सकता है। देश की आम जनता ही इस देश की प्रगति का परिचायक है। यदि उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप सरकार द्वारा नीतियां नहीं बनाई जाती तो उस सरकार को निक्कमा ही कहा जाएगा। अपनी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए हमें एकजुट होकर तिरंगा उठाकर युद्ध का शंखनाद करना ही होगा। यही हमारी अपेक्षा है, अपील है, आवाहन है, और पैगाम भी है।
आइए हम सब मिलकर मानव सेवा और देशभक्ति की एक ऐसी लौ जलाएं जिससे हमारी आम जनता का जीवन सुखमय हो।

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