संपादकीय
नसून सिर पर है। खासकर मुंबई जैसे इलाकों में मानसून का प्रभाव कुछ ज्यादा ही होता है। जहां एक ओर अतिवृष्टि पानी की आपूर्ति के लिए सुखद होती है वहीं इसके कारण यहां की जनता को अनेक दुष्वारियों का सामना करना पड़ता है। वर्ष 2005 में अतिवृष्टि के जो कहर ढाया था वो आज भी यहां की जनता के मानस पटल पर अंकित है। अनेक मासूमों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। सैकड़ों घर तबाह हो गए थे। संपत्ति के नुकसान कोई सीमा नहीं थी। सवाल यह उठता है कि आने वाले मानसून के लिए हम कहां तक तैयार हैं। प्रशासन ने इससे निपटने के लिए अभी तक क्या कदम उठाए हैं? हमारे ‘‘डिजास्टर मैनेजमेंट’’ ने क्या एहतिहाती कदम उठाए हैं?
मानसून के दौरान रेलवे के संचालन को अबाधित ढंग से चलाने में अनेक बाधाएं आती हैं। ट्रैक पर कार्य करने वाले ट्रैक मेंनटेनर्स, ओ.एच.ई. स्टाफ, सिग्नलिंग स्टाफ आदि को अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए अभी से जरूरी कदम उठाना जरूरी है। जल-भराव रोकने के लिए मशीनरी को दुरुस्त करना जरूरी है। ट्रैक के आसपास कचड़े के अंबार लगे हैं। नदी नालों की हालत बदत्तर है। ट्रैक पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को रेनकोट आदि समय पर उपलब्ध कराना रेल प्रशासन की नैतिक जिम्मेदारी है। जिसकी ओर प्रशासन को गंभीरता से सोचना चाहिए। यही हाल परेल, माटुंगा वर्कशॉप, सी एंड डब्ल्यू डिपो व डीजल एवं विद्युत शेडों का भी है। जहां जल-भराव की समस्या विकट होती है। कामगारों को समय रहते गम-बूट व अन्य सुरक्षा उपकरण आदि उपलब्ध कराना भी प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए। किसी भी तरह की आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयारी पूर्ण होनी चाहिए। मानसून के दौरान होने वाली बीमारियों की रोकथाम एवं अस्पतालों में दवाई की उपलब्धता के लिए अभी से जरूरी कदम उठाना जरूरी है। कार्यस्थलों पर वाटर प्यूरीफायर आदि का समुचित रख-रखाव सुनिश्चित करना चाहिए जिससे दूषित पेयजल के कारण होने वाली बीमारियों से बचा जा सके। प्रकृति के प्रकोप को रोका तो नहीं जा सकता परंतु इसके कारण होने वाली दुष्वारियों से निपटने के लिए समुचित प्रयास करने से इस प्रकोप पर अंकुश अवश्य लगाया जा सकता है और इसके लिए प्रशासन द्वारा समय रहते जरूरी कदम उठाना जरूरी है।