भुमेश माथुर,

हमारा लोको पायलट अपनी ड्युटी के दौरान एक योगी की तरह कार्य करता है। हर पल उसे सिग्नल जो लाल-पीले होकर उसकी अग्निपरीक्षा लेते हैं। फिर हरा सिग्नल देखकर उसकी आंखों में कुछ सुकून मिलता है। लंबे समय के लिए ट्रेन खड़ी हो जाए या यूं कहे कि हमारी प्यारी लोहपथ गामिनी यदि अड़ जाए तो यात्रियों के कोप का भाजन भी उसे ही बनना पड़ता है। फिर भी वह पूर्ण संयम रखते हुए अपनी भावनाओं से समझौता करता हुए एक वीर योद्धा की तरह एक सैनिक की भांति अपने लक्ष्य से नहीं भटकता। बड़े दुख का विषय है कि एक प्रथम श्रेणी (ए.सी.) पास की पात्रता रखने वाला लोको पायलट अपनी ड्युटी के दौरान तपती हुई गर्मी, सुकड़ा देने वाली सर्दी और धपेडे देने वाली बरसात में लोको में अपने छोटे कैब में कार्य करते पर मजबूर है। बुलेट ट्रेन की बात करने वाली सरकार और रेलवे प्रशासन को यह बात समझ में नहीं आती कि लोको पायलट के कैब में एसी तो दूर रहा एक शौचालय तक की व्यवस्था तक नहीं है?
जरा सोचिए कि किस दशा में वह कार्य करता है। रन ओवर के मामलों में चाहे वो इंसान हो या जानवर, लाश उठाकर ट्रैक क्लीयर करने की जिम्मेदारी भी गार्ड के साथ मिलकर उसे निभानी पड़ती है। ऐसे कितने ही मामलों में हमारा रनिंग स्टाफ घर जाकर खाना तक नहीं खा पाता। फिर उसके आराम के लिए रनिंग रूमï्स की व्यवस्था होती है। परंतु वहां कैसी दुरव्यवस्था है वह जानकर आप हैरान हो जाएंगे। वहां पड़े पलंग में करवट बदलने पर हिचकोले लेते हैं, बिस्तरों की हालत बेहाल है, फिर अगर खुदा ना खास्ता नींद आ भी जाए तो बिस्तर में मौजूद खटमल उसका खून चूस लेते हैं। शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं है, शौचालयों की दशा शोचनीय है ऊपर से कई स्थानों पर आसामाजिक तत्वों की गुंडागर्दी। सुरक्षा का कोई इंतजाम तक नहीं है। पंखे भगवान भरोसे चलते हैं, एसी तो दूर की बात है। रनिंग रूमï्स तक जाने के रास्तों में सांप व अन्य कीड़े मकोड़े का भय व्याप्त रहता है। बारिश के दिनों में तो स्थिति बड़ी भयावह हो जाती है। बेचारा लोको पायलट अपना रोना कहां रोए?
लोको पायलट की दशा में कोई सुधार नहीं
सीआरएमएस जैसे संगठन उनके लिए आवाज उठाते हैं, पीएनएम आयटम बनते हैं, कुछ सुधार होता है फिर वही ढाक के तीन पांत। प्रशासन कुंभकरण की नींद सो जाता है। जाने अनजाने या सिस्टम में त्रुटि होने के कारण उससे जरा सी गलती हो जाए तो उसे सूली पर चढा दिया जाता है। एसपीएपी के मामलों में कितनों की बलि का बकरा बना दिया जाता है। सवाल यह उठता है कि स्थिति कब और कैसे सुधरेगी? एक हवाई जहाज चलाने वाले पायलट से हमारा लोको पायलट किसी भी तुलना में कम नहीं है। हवाई जहाज पायलट मात्र 400 – 500 तक यात्रियों को ले जाने का कार्य करता है जबकि हमारा लोको पायलट हजारों यात्रियों को सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंचाता है। एक हवाई जहाज के पायलट की पगार और उसको मिलने वाली सुविधाओं का आकलन करें तो हमारे लोको पायलट उससे कोसों पीछे हैं। यह भेद क्यों है? क्यों नहीं हमारे लोको पायलट को वही सुविधाएं मिलती जो एक हवाई जहाज के पायलट को मिलती हैं? सोचने का विषय है और यह एक थप्पड़ है उनके गाल पर जो कहते हैं कि रेल कर्मचारी काम नहीं करते। – एकता समय की पुकार है।

भारतीय रेलवे में रोजना सैकड़ों रेलगाडिय़ां प्रतिदिन रेल यात्रियों को अपने गंतव्य स्थान पर सुरक्षित पहुंचाने का कार्य करती हैं। इसके अलावा …. टन माल ढोने का कार्य माल गाडिय़ों द्वारा किया जाता है। जिससे राजस्व की प्राप्ति के अलावा देश का व्यापार फलता-फूलता है और देश की प्रगति होती है। रेलवे कर्मचारी एक सैनिक की भांति अपनी ड्युटी पूर्णलगन और निष्ठा के साथ करते हैं। जरूरत पडऩे पर सेना के साजो-सामान और रसद पहुंचाने में भी भारतीय रेलवे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा सुनिश्चित करती है। सवाल यह उठता है कि आज रेलकर्मचारी की स्थिति क्या है? वह किस दशा में कार्य रहा है? उसको मिलने वाली सुविधाओं की क्या स्थिति है? आइए हम पहली कड़ी में आपको रनिंग स्टाफ से संबंधित एक अति महत्वपूर्ण वर्ग लोको पायलट से रूबरू करवाते हैं।

 

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