कविता : अनिल महेंद्रू, उपाध्यक्ष, सीआरएमएस
अनिल महेंद्रू, उपाध्यक्ष, सीआरएमएस
मैं एक रेल कर्मचारी हूं
दिन रात कार्य मैं करता हूं
सर्दी, गर्मी या हो बरसात
ड्युटी अपनी मैं निभाता हूं।
नहीं सुविधाएं मुझे हैं मिलतीं
रिक्त पदों का बोझ उठाता हूं
कार्य दशा बेहाल मगर मैं
ड्युटी अपनी निभाता हूं।
पड़ी ट्रैक पर गंदगी इतनी
धड़-धड़ करके रेल दौड़ती
जान अपनी की बाजी लगाकर
यात्री सुरक्षा सुनिश्चित करता हूं।
साथी लहू-लुहान पड़ा ट्रैक पर
फिर भी ड्युटी निभाता हूं
उपकरण, औजार नहीं मिलते
फिर भी रेल चलाता हूं।
लाल, पीला फिर हरा सिग्नल
कभी न ध्यान बंटाता हूं
योग साधना मुझसे सीखो
बिन शौचालय रेल चलाता हूं।
रेल आवासों की बद्त्तर हालत
रेल अस्पतालों में दवा नदारद
धखालों की चिंता है सताती
फिर भी ड्युटी निभाता हूं।
खून पी गए रनिंग रूम के खटमल
बिन मैटिरियल काम मैं करता हूं
काम नहीं करते रेल कर्मचारी
लांछन सह कर भी ड्युटी करता हूं।

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