संपादकीय

डॉ. आर.पी. भटनागर

भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की संपूर्ण विश्व में अपनी एक अलग पहचान है। बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना देश की संस्कृति का एक हिस्सा है। पहले संयुक्त परिवार होते थे, दादा-दादी, नाना-नानी की गोद में बैठकर बच्चे किस्से-कहानियों के जरिए भारतीय संस्कृति और सभ्यता को जान पाते थे, मानव मूल्यों को समझ पाते थे और उनमें नैतिकता का विकास होता था। धीरे-धीरे न जाने कब और कैसे हम एकाकी परिवार की ओर चले गए। भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत किस्से-कहानियों की जगह टी.वी. सिरियलों ने ले ली। बच्चों और मां-बाप के बीच भी बातचीत और विचार-विनिमय का सिलसिला कम होता चला गया। जिंदगी की दौड़-धूप से कहीं न कहीं नैतिकता का पाठ हमें याद ही नहीं रहा। परहित की भावना कहीं लुप्त हो गई और स्वार्थ हावी हो गया। टी.वी. सीरियल तक तो ठीक था परंतु मोबाइल और इंटरनेट आ जाने से रही सही कसर भी बाकी नहीं रही। आज बच्चे, जवान, बूढ़े सभी मोबाइल पर ऊंगलियां चलाते हुए नजर आ जाएंगे। बड़ी-बड़ी सभाओं, बैठकों और यहां तक की देश की सर्वोच्च संसद में भी सभ्रांत व्यक्ति मोबाइल पर व्यस्त देखे जा सकते हैं किसी को फुर्सत नहीं है।

भारत की बौद्धिक क्षमता का संपूर्ण विश्व लोहा मानता है। परंतु भारतीय युवा वर्ग की इस आलौकिक क्षमता में भी विदेशी इंटरनेट कंपनियों ने सेंध लगानी शुरू कर दी। तमाम तरह के अच्छे-बुरे ऐप, गेम्स और न जाने क्या-क्या। मां-बाप और बच्चों के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। भारतीय संस्कृति, सभ्यता और मानव मूल्यों का धीरे-धीरे पतन हो रहा हे। बच्चों की रुचि पढ़ाई की तरफ कम अन्य चीजों में अधिक होती जा रही हे। वैज्ञानिक ढ़ंग से सोचने और अविष्कारक क्षमता कम होती जा रही है। कहीं यह विदेशी कंपनियों की हमारे देश के युवा वर्ग को बौद्धिक रूप से पंगु बनाने की कोई साजिश तो नहीं है? हमें इस ओर बहुत गंभीरता के साथ सोचना होगा। किसी ने ठीक ही कहा है कि विज्ञान एक अच्छा सेवक हो सकता है परंतु यह हावी होकर मालिक बन जाए तो विनाश भी कर सकता है। मोबाइल और इंटरनेट का सही इस्तेमाल किया जाए। इसके लिए हमें स्वयं एक उदाहरण पेश करना होगा। बच्चों पर बड़े प्यार से पैनी नजर रखकर उनमें भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रुचि पैदा करनी होगी। उनके साथ कुछ समय जरूर बिताना चाहिए। सवाल परिवार को तो है ही साथ ही यह देश के भविष्य का भी सवाल है। देश पर मर-मिटने वाले अनेक देशभक्तों की गाथाओं से भारतीय इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। उन्हें जानना जरूरी है। मोबाइल और इंटरनेट का सही इस्तेमाल करके हम स्वयं और भावी पीढ़ी का भारतीय संस्कृति और सभ्यता से रूबरू कराएं। देश भक्ति की भावना तभी जागृत होगी। मानव मूल्यों को विकास इसी पर निर्भर है। सरकार की भी यह जिम्मेदारी है कि वह इंटरनेट के दुष्परिणामों एवं उनकी रोकथाम हेतु जरूरी कदम उठाए।

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