संपादकीय
सफलता के मूल मंत्र, डॉ. आर.पी. भटनागर
भरत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी जिनकी नेतृत्व क्षमता का लोहा संपूर्ण विश्व मानता था, ने सफलता के मूल मंत्र दिए थे वह आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे। चाहे वो देश के विकास की बात हो या समाज अथवा व्यक्तिगत उत्थान की सभी स्तरों पर वह मूल मंत्र कड़ी मेहनत, दूर दृष्टि, पक्का इरादा, अनुशासन सफलता की कुंजी है। किसी भी संगठन का चहुंमुखी विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसके कार्यकर्ता पूरी ईमानदारी के साथ इन मूल मंत्रों का पालन किस हद तक करते हैं। दूसरों को उपदेश देने से पहले व्यक्ति को स्वयं आदर्श बनना चाहिए। बिना कड़ी मेहनत के लक्ष्यों को हासिल नहीं किया जा सकता। इसके लिए अपने संगठन के प्रति लगाव एवं जज्बा होना जरूरी है। व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वह अपने संगठन को क्या दे रहा है न कि यह कि संगठन उसे क्या दे रहा है। स्वार्थी व्यक्ति संगठन के पतन का कारण बन सकता है। संगठन के माध्यम से मानव सेवा करने का अवसर प्राप्त होता है। गरीब और शोषित मजदूर की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। इसके लिए समय की पाबंदी जरूरी है। बिना समय दिए कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। वर्तमान परिपेक्ष्य में जिस तरह से सरकार द्वारा कामगारों के हितों पर कुठाराघात किया जा रहा है ऐसे समय में दूर दृष्टि का होना बहुत जरूरी है। आगामी चुनौतियों का एहसास होना नितांत आवश्यक है। भविष्य में किस तरह की स्थिति उत्पन्न होगी उसका आकलन वर्तमान में ही किया जाना चाहिए। तभी अपने लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। यदि 2018 में परीक्षा देनी है तो सभी तैयारी 2017 में ही पूरी की जाए तभी अव्वल आने का सपना पूरा हो पाएगा। इसके लिए दृढ़ निश्चय और पक्के इरादे के साथ मैदान में उतरना जरूरी है। बड़ी से बड़ी बाधा को पार करने का जज्बा होना चाहिए। विचलित होने से काम बिगड़ते हैं बनते कभी नहीं। अनुशासन के साथ हमें अपने कार्यों को अंजाम देना चाहिए। बिना अनुशासन के कोई भी संगठन नंबर-1 नहीं बन सकता। सगठन है तो हम हैं यह बात सभी कार्यकर्ताओं को जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना अच्छा है। संगठन से बड़ा कोई नहीं है। यह जज्बा होना चाहिए कि यह संगठन मेरा है। मैं जो भी कार्य करूंगा उसमें संगठन के प्रति लगाव साफ झलकना चाहिए ऐसी सोच ही संगठन को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा सकती है।