भायखला हॉस्पिटल में लिखा जाता है, हर रोज़ एक नया इतिहास!
होम्योपैथी का स्वर्णिम दौर
बृजेश सिंह
हुनर जब सर उठा कर बोलता है !
तराशूं मैं,तो पत्थर बोलता है !!
हुआ है ख़ौफ़ उसको,कब किसी से,
वो आईना है, मुँह पर बोलता है ,,
– डॉ.लक्ष्मण शर्मा ‘वाहिद’
दोस्तो मुझे ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि, मैं डॉ.लक्ष्मण शर्मा ‘वाहिद’ को ,आपके सामने एक अत्यंत सफ़ल होम्योपैथिक डॉक्टर के रूप में पेश करूँ या, एक ‘मशहूर उर्दू शायर’ के रूप में! ख़ास तौर पे आपका लिखा हुआ ये शेर पढ़ कर तो मेरी दुविधा और भी बढ़ गयी है!
एक तरफ आपका होम्योपैथिक डॉक्टर का किरदार है, जो अपने आप में एक जादुई कहानी लगती है! अभी हाल ही की सी, बात है ,जब महज़ तीन साल पहले डॉ. साहब ने ,डॉ.बी .आर .आंबेडकर मेमोरियल ,सेंट्रल रेलवे हॉस्पिटल भायखला, को एक ऑन.होम्योपैथिक कंसलटेंट की हैसियत से ज्वाइन किया था! उस वक्त होम्योपैथिक विभाग उस उजड़े हुए शहर के जैसा था, जिसका न कोई राजा था, और न कोई बाशिंदा! कोई परिंदा भी पर नहीं मारता था, वहीं आज ये हाल है कि, हर रोज़ मरीज़ों की लम्बी लम्बी क़तार लगी रहती है! रेलवे के एक आम कर्मचारी से लेकर रेलवे के किसी भी बड़े से बड़े अधिकारी को डॉ. शर्मा के चैम्बर के सामने, अपनी बारी आने का इन्तिज़ार करते, या उनके चैम्बर से निकलते हुऐ देखा जा सकता है!
इसका जीता जागता उदाहरण है कि, हमारे भूत-पूर्व, महाप्रबंधक, ऑन.एस.के. सूद साहब, खुद भी डॉ.शर्मा से अपने इलाज के लिये उनके चैम्बर में आया करते थे ! ये एक चमत्कार ही है कि, डॉ.लक्ष्मण शर्मा को सूद साहब का ‘फॅमिली होम्योपैथीक फिजिशियन’ होने का गौरव हासिल है ! यहाँ, मैं आपको ये भी बताना ज़रूरी समझता हूँ कि, इससे ‘होमियोपैथी का स्वर्णिम दौर’ ही कहा जायेगा जब, श्री एस.के. सूद भूत-पूर्व – महाप्रबंधक, (सेंट्रल रेलवे) साहब ने ‘विशिष्ट होम्योपैथिक सेवा’ के लिये डॉ.लक्ष्मण शर्मा ‘वाहिद’ को मेहमान और रेलवे कर्मचारियों से खचा-खच् भरे, सी. एस. टी. ऑडिटोरियम में तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच, ‘जी.एम. अवार्ड 2016’ से नवाज़ा था!
आपकी कामियाबी का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता है! डॉ. शर्मा ने. एक ऐसा दस्तावेज़ तैयार किया है ,जिसे देख कर आपके तो क्या ‘कुछ ख़ास लोगों के होश उड़ जायेंगे’! इसमें उन मरीज़ों की बीमारी के फोटोज हैं ,जिनको ला-इलाज़ समझा जाता है , और ये माना जाता है कि, इसका तो पैर, ऊँगली, या हाथ काटना ही पड़ेगा , जैसे मिसाल के तौर पे गैंग्रीन, बूबोनिक अलसर, डायबिटिक फुट, इत्यादि ! यही नहीं, इन-डोर विभाग से भी मरीज़ों को डॉ. शर्मा के पास रेफर, किया जाता है!
मैंने खुद अपनी आँखों से, वहील चेयर पर मरीज़ों को डॉ. शर्मा के पास आते देखा है ! आज होम्योपैथी को, जो एक नयी पहचान मिली है, उसके लिये आपकी जितनी तारीफ़ की जाये उतनी कम है!
इस साक्षात्कार के दौरान, जब मैंने डॉ. शर्मा से पूछा कि, हॉस्पिटल के दूसरे डॉ. भी आपके पास अपने पेशेंट्स भेजते हैं, तो आपको कैसा लगता है ? आपको गर्व होता होगा न ?, इस पर सर झुकाकर बड़े नम्र अंदाज़ में कहा ‘जो लोग मेरी क़ाबिलियत पर इतना भरोसा करते हैं, ‘मैं उन सबका शुक्रगुज़ार हूँ’
अब अगर मैं बात कहूँ डॉ. शर्मा ‘वाहिद’ उर्दू शायर की, तो मैं आपको बता दूँ कि, डॉ. ‘वाहिद’ का शुमार इस शहर के अदीबों में होता है ! उर्दू अदब के तमाम हलकों में, डॉ. वाहिद का नाम बड़े ऐहतराम के साथ लिया जाता है! आल इंडिया रेडियो, उर्दू मुशायरों में डॉ.साहब शायरी की बहुत सराहा जाता है! यही नहीं,आपकी गज़़लें, दुबई, दोहा -क़तर, सऊदी, जैसे मुल्क़ों में बहुत लोक प्रिय हैं! इसका का सबूत ये कि डॉ. साहब को, ऐसे-ऐसे, सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है, जिनको पाने में, लोगों की उम्र निकल जाती है!
चलते-चलते, मैंने सुना है, डॉ.साहब, मराठी चैनल पर, एक कार्यक्रम का, मराठी में संचालन करने वाले भी हैं!