खेल में हारने से भारत की हार नहीं होती…

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संपादकीय

भारतीय क्रिकेट टीम चैम्पियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान टीम से हार गई। संपूर्ण भारतीय खेल प्रेमियों में मातम सा छा गया। कहीं-कहीं खुशियां भी मनाई गई वो एक अलग मुद्दा है। खेल में हार-जीत तो लगी रहती है। परंतु इसमें भारत की हार का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। भारत अजेय है और अजेय रहेगा। जब खूंखार आतंकवादी भारत की प्रभुसत्ता को हिला नहीं पाए तो कोई भी ताकत भारत का बाल भी बांका नहीं कर सकती।
भारत की हार तब होती है जब भारत का अन्नदाता किसान खुदखुशी करता है, भारत की हार तब होती है जब गरीब मजदूरों का शोषण होता है, भारत की हार तब होती है जब बलात्कार होता है, नारी का अपमान किया जाता है, भारत की हार तब होती है जब कामगार को उनके न्यायोचित अधिकारों से वंचित किया जाता है। भारत तब हारता है जब सत्तारूढ़ सरकार की नीतियां मजदूर और आम जनता के हितों को दरकिनार कर चंद पूंजीपतियों के मनमाफिक बनाई जाती है।
देश की प्रगति में किसान और मजदूर एवं समस्त कामकाजी वर्ग अहम भूमिका निभाता है। सीमाओं पर तैनात बहादुर जवान जान की बाजी लगाकर मातृभूमि की रक्षा करते हैं। किसी भी देश में सत्तारूढ़ लोग यदि सत्ता के नशे में चूर होकर आम जनता के हितों की अवहेलना करते हैं तो उस देश की प्रगति कभी हो ही नहीं सकती। देश की प्रगति तभी संभव है जब उसका लाभ गरीब से गरीब तबके तक पहुंचे। देश का किसान यदि खुशहाल नहीं है, देश के मजदूर को यदि दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा हो तो सबका साथ सबका विकास का नारा बेदम हो जाता है। उसका कोई अर्थ ही नहीं रह जाता।
यही हाल रेलवे का भी है। भारतीय रेलवे विश्वस्तरीय तभी बन पाएगी जब रेलकर्मियों को मिलने वाली सुविधाएं भी विश्वस्तरीय बनाई जाए। कार्यदशा में सुधार जरूरी है। खेल में हारने से टीम हारती है परंतु यदि देश की प्रगति में योगदान देने वाले कर्णधार मानसिक या शारीरिक रूप से हार गए तो देश की हार निश्चित है।
इसके लिए सरकार को अपनी नीतियों की विवेचना कर उनमें सुधार करना चाहिए। मूल मुद्दों पर आंखे मूंद लेने और टालमटोल की नीति अपनाने से भारत के विकास के अश्वमेघ यज्ञ में रुकावट आ सकती है।

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