कविता प्रफुल्ल मणि त्रिपाठी
तुम कदम बढाओ मंजिल तक, मंजिल तुम तक आ जायेगी,
परवाह करो ना तमसा की, तमसा खुद ही हट जायेगी।
मत करो याचना कभी यहाँ,
प्रतिकूल हवाओं के आगे,
मत करो कभी स्वीकार हार,
आतंक दबावों के आगे,
चटटान सदृश तुम हट जाओ, हर बाधा खुद भय खायेगी।
परवाह करो ना तमसा की, तमसा खुद ही हट जायेगी।
जिनमे उमंग उत्साह नहीं ,
शक्ति न रंचक बाहों में ,
पौरुष की पूंजी भूतिज्योति है ,
जलती नहीं निगाहो में ,
उनसे कह दो उनकी आशा, अनब्याही ही रह जायेगी।
परवाह करो ना तमसा की, तमसा खुद ही हट जायेगी।
वे दीप नहीं है सूर्यपुत्र, जो तूफानों में जलते हैं,
वो फूल और हैं, जो गुलाब बनकर काटो में खिलते हैं।
तुम निर्भय हो कर बढ़ो, तुम्हे मंजिल खुद राह बतायेगी,
परवाह करो ना तमसा की, तमसा खुद ही हट जायेगी।