कविता

अनिल महेंद्रू

जाना सबको है एक रोज,
कुछ प्रीत निभा कर जाते हैं
औरों की खातिर विष पी कर
वो नीलकंठ बन जाते हैं।
काम बहुत कर जाते हैं
वो नाम अमर कर जाते हैं
याद सभी को आते हैं
वो मन मंदिर में बस जाते हैं।
परहित को अपना हित समझो
दुख दर्द मिटाओ औरों का
इस देश को अपना तुम समझो
सम्मान करो तिरंगे का
आदर करो सब धर्मों का
भाईचारा मजबूत करो
शोषण न कभी होने पाए
अबला न कभी रोने पाए
हर अत्याचार का तुम प्रतिकार करो
नव भारत का निर्माण करो।

Leave a Reply