होंगी ये शाही सुविधाएं
नई दिल्ली, देश को अब भी अपने अगले राष्ट्रपति का चुनाव करना है, लेकिन रेल मंत्रालय पहले ही विजेता उम्मीदवार के आवागमन के लिए आठ करोड़ रुपये के रेलवे सैलून की योजना बना रहा है। मंत्रालय इस संबंध में एक प्रस्ताव नए राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए जुलाई में भेजेगा।
सैलून के लिए जर्मन रेल कोच का इस्तेमाल होगा। यह बुलेटप्रूफ शीशे वाली खिड़कियों, 20 लाइन के टेलीफोन एक्सचेंज, प्लाज्मा कलर टीवी, सेटेलाइट कम्यूनिकेशन, जीपीएस और जीपीआरएस सिस्टम से लैस होगा। इसके अलावा इसमें मॉड्यूलर किचन और लोगों को संबोधित करने के लिए पब्लिक एड्रेस सिस्टम भी होगा।आजादी के बाद 1956 में बने दो डिब्बों वाले खास सैलून में डॉ. राजेंद्र प्रसाद और डॉ. राधाकृष्णन से लेकर डॉ. नीलम संजीव रेड्डी तक पूर्व राष्ट्रपतियों ने 87 मौकों पर यात्राएं कीं।
वर्ष 2006 में सैलून में यात्रा करने वाले डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आखिरी राष्ट्रपति थे। इसी वर्ष इन शाही सवारी डिब्बों (कॉन्फ्रेंस हॉल, प्रतीक्षालय, अध्ययन कक्ष और राष्ट्रपति के रक्षा सचिव के केबिन से सुसज्जित) को रेल संचालन के हिसाब से असुरक्षित घोषित किया गया था।रेलवे ने अपने 2007-08 के बजट में राष्ट्रपति के लिए नया सैलून बनाने के लिए छह करोड़ रुपये की राशि मंजूर की थी।
लेकिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सचिवालय ने सुरक्षा चिंताओं और रेलयात्रियों को होने वाली संभावित बाधा का हवाला देते हुए योजना को 2008 में अस्वीकार कर दिया था।उत्तर रेलवे के चीफ मेकेनिकल इंजीनियर अरुण अरोड़ा ने कहा, ‘यदि नए राष्ट्रपति की इच्छा होती है, तो रेलवे जल्द नया सैलून बना सकता है।’
रेलवे के पास हैं सैकड़ों सैलून कोच : रेलवे के पास ब्रॉड गेज लाइन पर चलने 62 वातानुकूलित और 222 गैर-वातानुकूलित सैलून कोच हैं। इसके अलावा मीटर गेज लाइन वाले दो वातानुकूलित और 24 गैर- वातानुकूलित सैलून भी हैं। इनका रखरखाव रेल मंत्री, राज्य मंत्रियों, रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों और रेलवे जोन के महाप्रबंधकों के लिए किया जाता है। रेल अधिकारी कहते हैं कि इन सैलून के रखरखाव की लागत ‘मामूली’ होती है। क्योंकि ये कभी-कभार इस्तेमाल होते हैं। एक अधिकारी ने बताया, ‘इनका (सैलून) इस्तेमाल निरीक्षण डिब्बे की तरह किसी दुर्घटनास्थल और सडक़ या हवाई संपर्क से दूर रेलवे लाइनों तक पहुंचने में किया जा सकता है। नए कर्मचारियों के प्रशिक्षण में भी इनका उपयोग किया जाता है।’
पांच साल में 162 बार इस्तेमाल : पिछले साल आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल के एक आरटीआई आवेदन के जवाब में रेलवे ने बताया था कि सितंबर 2016 तक पांच वर्षों में रेल मंत्री और राज्य मंत्रियों ने यात्रा के लिए 162 बार सैलून का इस्तेमाल किया। इनमें राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने सबसे ज्यादा 40 यात्राएं कीं, जबकि पूर्व रेल मंत्री एम मल्लिकार्जुन खडग़े ने कम यात्राओं (32) के बावजूद सबसे ज्यादा दिन (53) सैलून में बिताए। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बीते सितंबर तक सैलून में 25 यात्राएं की थीं, जिनकी कुल अवधि 32 दिन थी। अग्रवाल मानते हैं सैलून की सुविधा आधुनिक भारत में ज्यादा प्रासंगिक नहीं है। उन्होंने कहा, ‘रेलवे अनावश्यक रूप से एक औपनिवेशिक बोझ ढो रहा है। सैलून की सुविधा खत्म होनी चाहिए।’