स्तर कब सुधरेगा…? | रेलवे अस्पताल, रेलवे आवास, रेलवे स्कूल…

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वर्तमान सरकार रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने की योजना बना रही है। हम इसका तहे दिल से स्वागत करते हैं। रेल यात्री हमारे ग्राहक हैं और उनकी संतुष्टि हमारा प्रथम कर्तव्य है। इस मामले में सभी रेलकर्मी तमाम विपरीत परिस्थ्तिियों एवं सीमितताओं के बावजूद अपनी जान तक की परवाह न करते हुए पूरी लगन और निष्ठा के साथ अपनी ड्युटी वो अंजाम देते हैं। परंतु इन निष्ठावान कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाओं की ओर सरकार का ध्यान बिल्कुल नहीं है। न तो रेल मंत्रालय इस बारे में सोचता है न ही रेल प्रशासन को कोई परवाह है। रेलवे अस्पतालों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। यही हाल रेल आवासों व रेलवे स्कूलों का है। रेलवे अस्पतालों में स्टाफ की कमी है, दवाईयों का अभाव है, भर्ती मरीजों के बिस्तर में छुपे

खटमल कभी की आतंकवादियों की तरह हमला कर उनका खून चूस लेते हैं। स्वच्छ भारत अभियान का असली चेहरा इन रेलवे अस्पतालों में देखने को मिलता है। वहां परोसे जाने वाला खाना देखकर मरीजों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। अस्पतालों के द्वार सभी के लिए खुले हैं चाहे वो स्वछंद विचरण करने वाले जानवर ही क्यों न हो। सिक्यूरिटी गार्ड की कोई व्यवस्था या प्रावधान नहीं है। क्या भारतीय रेल के साथ-साथ इन अस्पतालों को विश्वस्तरीय नहीं बनाना चाहिए? क्यों इस ओर सरकार का ध्यान नहीं जाता है? सांसद और विधायक भी सरकारी कर्मचारी की श्रेणी में आते हैं। क्यों नहीं वे अपना और अपने परिवार का इलाज सरकारी अस्पतालों में करवाते हैं? अस्पतालों की हालत भी रेलवे रेलवे अस्पतालों की तरह ही है।

रेलवे कर्मचारियों को मिलने वाली सुख-सुविधाओं में बिना सुधार किए भारतीय रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने की बात करना न्यायसंगत नहीं है। इन अस्पतालों के लिए खर्च किए जाने वाली करोड़ों की धनराशि का सही या योजनाबद्ध तरीके से इस्तेमाल कर एवं अतिरिक्त फंड उपलब्ध करा कर रेलवे अस्पतालों को भी निजी अस्पतालों जैसा बनाया जा सकता है। फिश्र टाई-अप रेलवे को नहीं बल्कि निजी अस्पतालों को करना पड़ेगा। रेलकर्मी भी मानसिक तनाव से मुक्त होकर और अधिक समर्पण के साथ भारतीय रेलवे के चहुंमुखी विकास में अपना योगदान दे पाएंगे एवं चिंतामुक्त होकर नए वैज्ञानिक सुझाव दे पाएंगे।

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