एक साक्षात्कार, सेंट्रल रेलवे हॉस्पिटल, मुम्बई के मशहूर होम्योपैथ, डॉ .लक्ष्मण शर्मा उर्फ़ डॉ. वाहिद. के साथ!

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      बृजेश सिंह 
(विशेष संवाददाता)
डॉ . साहब सबसे पहले तो आपकी इस अपार सफलता पर, ‘राष्ट्रीय रेल भास्कर’ परिवार की तरफ से ढेरों बधाइयाँ! आपने होमियोपैथी को एक नयी पहचान दी है, एक नया आयाम दिया है! हर तरफ आपके नाम के चर्चे हैं, सर कैसा लगता है सुनकर!
– ज़ाहिर सी बात है अच्छा ही लगेगा!
डॉ.साहब आपने सुना ही होगा कि, हर सफल व्यक्ति को कुछ न कुछ क़ीमत चुकानी पड़ती है, क्या आपको भी कभी दो-चार होना पड़ा इन सबसे?
मुस्करा कर, यक़ीनन, होना पड़ा!
सर, एक गंभीर मुद्दे पर आपके विचार जानना चाहूँगा! आप लोगों पर एक बड़ा ही सनसनी ख़ेज़ आरोप लगता है की आप लोग, एलॉपथी की राह पर मरीज़ को तुरंत फायदा पहुँचाने के लिये ‘स्टेरॉइड्स’ का इस्तेमाल करते हैं, क्या ये सच हैं?
इससे बड़ा दुर्भाग्य और बचकाना सवाल कोई हो नहीं सकता! सबसे पहले तो मैं तुम्हें ये बता दूँ, जिस पध्दति से होम्योपैथीक दवाइयाँ बनायीं जाती हैं, और ख़ास कर जिस प्रणाली में मरीज़ों को दी जाती हैं, उस प्रणाली में ये संभव ही नहीं हैं! और दूसरे कोई भी सच्चा होम्योपैथ, कभी ये गिरी हुई हरकत कर ही नहीं सकता! दरअसल  एक ‘होम्योपैथ’ को ये सब करने की ज़रूरत ही नहीं हैं!
यानि कि, आप अपनी दवाईयों में ‘स्टेरॉइड्स’ का मिश्रण प्रयोग में नहीं लाते हो??
आपने बिलकुल सही कहा, बिलकुल नहीं, कभी नहीं!
क्या आप ‘स्टेरॉइड्स’ के इस्तेमाल को सही मानते हैं, या फिर ग़लत?
ब्रजेश जी, बेहतर होगा यदि आप होमियोपैथी से सम्बंधित सवाल पूछें!
चलिए सर, आपकी बात मान लेता हूँ, सर, हमने सुना हैं कि, होमोयोपॅथिक इलाज़ के बाद इंग्लिश दवाइयाँ काम नहीं करतीं हैं?
बे-बुनियाद!
कहा तो यहाँ तक जाता हैं कि, ‘होमियोपैथी प्लेसिबो’ इफ़ेक्ट हैं! यानि, कोई चिकित्सिय गुण हैं ही नहीं!!
अच्छा सही फऱमाया आपने, तो जाइये, सी. सी. आर. च, बंद करवा दीजिये! इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि, जहाँ एक तरफ होमियोपैथी ने पूरे विश्व में अपार सफलता के झंडे गाड़े हैं, वहीँ अपने ही घर में बे – बुनियाद इल्ज़ामों का सामना करना पड़ता हैं!
क्या ये भी, इलज़ाम ग़लत है कि, होमियोपैथी पहले रोग को बढ़ाती है, फिर ठीक करती है??
ये आपने दुरस्त कहा है! हाँ ये सही है, मगर इसके तकऩीक़ी भाग को ठीक से समझने की ज़रूरत है! देखिये होमियोपैथी किसी भी बीमारी को दबाने के खि़लाफ़ है! आपको बीमारी के जो भी लक्षणशरीरी सतह पर दिखाई देते हैं, वो शरीर के आंतरिक सामंजस्य में आयी खऱाबी के कारण  पैदा होते हैं! अब यदि इन बीमारियों का इलाज़, मलहम, लेप, या जलाकर चिकत्सा करने वाली चिक्तिसा पध्दति का प्रयोग से किया जाता है तो, वो बीमारी ठीक नहीं होती है , अपितु ‘दब’ जाती है !
जब ऐसे मरीज़ों को सही होमोयोपॅथिक दवा दी जाती है, तो पुराने सारे लक्ष्ण उभर आते हैं! जो निहायती तौर पर मरीज़ के हक़ में होता है! मगर दुर्भाग्य वश, इसका ग़लत प्रचार किया गया है! ये प्रक्रिया हर मरीज़ में नहीं दोहराई जाती है!
अद्भुत, आपने तो मेरी भी आँखें खोल दी डॉ. साहब! 
आखिर वो ऐसी कौन सी बात है, वो कौन सी शक्ति है, जो आपको इतना जुझारू बनाता है, और इतने मुश्किल और ना-मुमकिन माने जाने वाले रोगों को ठीक करने का जज़्बा देता है!
मेरे प्रेरणा श्रोत, पिता (स्वर्गिय) श्री. देवीराम शर्मा ( रिटायर्ड सी.टी.आई) को दिये गए वचन की पूर्ती, तथा मेरी तरफ से उनको एक विनम्र श्रंद्धांजली!
आप अपनी इस अपार सफलता का श्रेय किसको देते हैं!
मेरे चाहने वाले, शुभ चिंतक, आप जैसे मित्रों की दुआएँ! और सबसे ज्य़ादा, बाबा साहिब भीमराव अम्बेडकर हॉस्पिटल के वो ‘इन हाउस डॉक्टर्स’ जो मेरी क़ाबिलियत पर भरोसा करते हैं, और अपने मरीज़ों को मेरे पास रेफर करते है! ये सारे मरीज़ मेरे इलाज़ से ठीक होने के बाद, मुझसे ज्यादा उनका शुक्रिया अदा करते हैं, जो मेरी सबसे बड़ी दौलत है!

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